हो गया शंख्नाध भी
अश्व भी हिनहिना दिया
तनी भ्रिकुटी ने ही
शत्रु को डरा दिया
लहू ने भी दौड़ लगा दी
नस नस भी फूल गयी
अब तक स्वयं से जीत पा ने
के प्रयास करता रहा था मैं
साधना , एकांत और मौन का
धारक था मैं
सारी इन्द्रियों को करके वश में
त्रुटियाँ त्याग के हो
गया पारंगत
अब शत्रु को भ्रिकुटी भर से
ललकार सकने में हुआ सक्षम
अब युद्ध भूमि में खड़ा
मैं देख सकता पूरा दृश्य
लहू की बहती धाराओं
की सुगंध फैल रही चरों ओर
शत्रु के भय का स्वाद
चख रहा मैं अब
और उसके कम्पन में
थिरक रहा मैं अब
प्रतीक्षा , धैर्य और साहस
का रहा है अब तक डंका
अब ऐसा मेरा अट्टाहस
जैसे जला दी मैंने लंका
विजय के स्वाद का अनुभव
है अनुपम , अद्भुत
सारा परिश्षम, सारी महनत
सारी पीड़ा घुल गयी है
जीत के सेहरे और परचम
में सारी हार छुप गयी है
मत घबरा ऐ लड़ने वाले
तू भी सब कर पायेगा
विश्वास का धागा पकडे तो ही
तू विजय का सेहरा बुन पायेगा
हार को गले लगाके ही
तू उसपर विजय पायेगा
तो तान भ्रिकुटी
ललकार उसे ऐसे
जैसे सिंह दहाडा होगा
हिम्मत रख और विश्वास
के दम पे
पहन विजय का चोगा
पहन विजय का चोगा
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