यह शब्द
भगवान्, ईश,
अल्लाह, राम, बुध ब्रह्मा
शंकर, येसु को समर्पित
नहीं हैं
न ही आव्वाहन हैं उनका
यह तो खुदे हुए
मेरे अतीत से निकली
पीड़ा पे हैं
वो पीड़ा जिसका मैं
आदिहो चुका हूँ
वो खुदी हुई मेरी कब्र के हैं
जिसे मैंने सालो पहले दफ़्न
किया था इतिहास में
प्रेम के सागर में मैं
गोते खता था कभी
आज उसी प्रेम के लहू में
कलम डुबोता हूँ
उसके मादक चरित्र
के पय्माने पीता था
आज उसी शराब में
डूबा हूँ…..
जिसे ब्रह्म माना था
वो आराध्य
किरदार बदल चुका है
और मैं उसकी आराधना में
दिन रात जला हूँ
खुदा इतिहास
खुदा की अनुभूति
नहीं अब कराता
आलिंगन तो दूर
चरण स्पर्श करने
नहीं पाता
जिव्हा , जो कभी
प्रेम के गीत गुनगुनाती थी
उसे अब बोलना भी नहीं आता
मेरे हिस्से प्रेम की बेला न आ सकी
केवल अश्कों का बबूल ही है भाता
निष्ठां और विश्वास
खुदा और इतिहास
यह केवल शब्द रह गए हैं
वस्तावित्कता का तमाचा
इतना करारा है कि
कोमलता और सरलता
जो गुण होते थे कभी
आज वो स्तम्भ …ढह गए हैं
तो यह शब्द…खुदा पे नहीं
खुदे हुए विह्वास पे हैं
खुदे हुए इतिहास पे हैं
खुदे हुए खुदा पे हैं
खुदा खुदा करती
सांस पे हैं
खुदा खुदा करती
सांस पे हैं
खुदा खुदा करती
सांस पे हैं
1 comment:
आप बहुत मार्मिक लिखते हो , इस प्रवाह को बनाये रखे . एक बात आप जब छंद रहित कविता लिखते हैं तो मात्रा का प्रतिबंधन नहीं होता है. अतः आप " पे " का बहुत प्रयोग करते है जो अनावश्यक लगता है इसे पूरा " पर " लिख सकते है ये शब्द कुछ चलताऊ से लगते हैं . दीपावली एवं धन तेरस की हार्दिक शुभकामनाएं
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