Wednesday, November 2, 2011
चश्मदीद गवाह Copyright ©
सुनी सुनायी बातों पे
सच्चाई की बरसात पे
इतिहास के छातों पे
यकीन कहाँ मुझे
मान कर चलता नहीं मैं
जान कर चलता रहा
किस्से कहानी के 'सच'
को मानू कैसे,
भूत की उंगली नहीं पकड़ता मैं
बहने देता हूँ आज के सत्य को
मैं धारा प्रवाह
मैं लतीफों के पन्नो में डूबना नहीं चाहता
मैं तो होना चाहता हूँ हर पल का
चश्मदीद गवाह
इतिहास रचा गया और स्वर्ण अक्षरों में नाम अंकित हुआ
माना तुमने, पोथियों में 'सच' लिखा हुआ
जांचा नहीं और 'महापुरुष', 'महान' जैसे शब्दों का
निर्माण किया
और परखे बिना , न कोई प्रमाण लिया
कैसे?
कैसे हर बात जो घुट्टी बन के तुम्हे पिलाई गयी
उसे तुमने स्वीकार किया
किसी पोथी को सच बतलाने का कैसे तुमने अधिकार दिया
मैं कैसे चल पाऊं ऐसे अँधेरी , रहस्यमयी राह
मैं तो होना चाहता, इतिहास के हर पल का
चश्मदीद गवाह
इतिहास जीतने वाले रचते हैं,
जो आधा सच सुनना चाहते हैं , वो ही इसे महान कहते हैं
जो पूरा सच सुनने के हिम्मत रखते हैं
उन्हें उद्दंड, क्रांतिकारी लोग कह पड़ते हैं
पर आधे सच की कोमलता से तो पूरे सच का
कड़वाहट ही मुझे रास आती है
कड़वाहट में कम से कम झूट की
तो नहीं बास आती है
फैसला चुनाव से होना चाहिए
भ्रमित करने वाले डर से नहीं
इसीलिए मुझसे नहीं सुननी किसी की वाह वाह
चाहे भयावह ही सच हो इतिहास का
मुझे तो होना है हर पल का चश्मदीद गवाह
शुत्रुमुर्ग की भांति जो मिटटी में सर धंसे हैं तेरे मेरे
उसे निकालें हम और विवेक का प्रयोग करे
हर कही बात सच नहीं होती,
हर पोथी, पुस्तक, इतिहास के घ्रिनास्पद सच के
पाप नहीं धोती
मान मान के पीढ़ी पीढ़ी कठोर सच को नाकारने वालों
सत्य को बिना जांचे, इतिहास की गरिमा को स्वीकारने वालों
खोलो आँखे , रहो प्यासे, सत्य को परखने की रखो चाह
इतिहास ऐसे ही मान न लो, बनो उसके चश्मदीद गवाह
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