Dreams

Thursday, November 3, 2011

रब ने पिला दी थोड़ी ! Copyright ©




जब घबराया मन था और सारे कोने थे चित्त
जब प्रेम की अनुभूति न था, थे हम मात्र निमित्त
जब पिता का प्यार दूर था, न थी कानो में माँ की लोरी
पुकारा उसको और उस रब ने मुझे पिला दी थोड़ी



कौतुहल का तूफ़ान छाती में जब तब उबला था
जब मन ने हीरे के बदले केवल कोयला उगला था
जब विश्वास न था, और हमने उम्मीद खो दी
पुकारा उसको और उस रब ने मुझे पिला दी थोड़ी


मित्रों का साथ जब छूटा, छूटा बचपन का साथ
जब जेबों में छेद थे, और धेला भर भी न था हाथ
जब ढूंढ रहा था लक्ष्य को और ,सारी किस्मत रो दी
पुकारा उसको और उस रब ने मुझे पिला दी थोड़ी


पीते पीता, मन मदमस्त हाथी सा डोला
रगों में बारूद मिला और हाथों में हथगोला
चिगारी बनी मेरी सोच और कलम बन बैठी गोली
इस सबके पीछे वो ही थी जो उसने पिलाई थी थोड़ी


फिर एक दिन सोचा मैंने क्या पिलाया होगा
कैसे नशे में चूर करके , क्या समझाया होगा
फिर निकली आवाज़ भीतर से , जन्मायी तुझमे उसने छोटी सी विश्वास की घोड़ी
लगाम थामई तुझको और, पिला दी तुझको थोड़ी


बस यह घुट्टी, यह मदिरा, यह मादकता बनी रहे
मेरे विचारों की नदिया में पूरी दुनिया बही रहे
हरदम शब्दों का रसास्वादन हो , बने कवि ,पाठक की जोड़ी
आओ मैं खोलूं यह मयखाना, तुम भी पीलो थोड़ी!

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