Tuesday, November 8, 2011
थूक,थूक मत चाट ! Copyright ©
फल पाने के चक्कर में
स्वाभिमान के घोड़े पे सवार
लगाम थमा देते हैं हम काम को
चाहे स्वाभिमान का घोड़ा डगमगाए
चाहे हम फल पाने के लिए नीलाम हों
अश्वा को दौड़ा दौड़ा थका देते हैं हम इतना
क़ि स्वाभिमान का घायल घोडा सह नहीं सकता जितना
फिर उसकी आहुति देके , उतारते एक दिन , उसे मृत्यु के घाट
चाहे उसकी भक्ती को खो दें हम
अपना नारा बस....थूक थूक के चाट
जब तिरिस्कार कर देते किसी लत, किसी कालिख सनी आदत को
ताकि उसकी आधीनता रहित ज़िंदगी, ही अपनी ताक़त हो
तो फिर क्यूँ अपनी कायरता का हल हम अपने जीवन में जोतें फिर
अपनी इन्द्रियों को वश में क्यूँ न करते, जिससे अपना उद्धार हो
अपने स्वाभिमान की गठरी चंद सिक्को या कुर्सी को क्यूँ देते बेच
जब उस स्वाभिमान की शय्या, स्वाध्याय का बिछौना हो सकता है सेज
पर फिर भी क्यूँ कर देते अपनी आत्मा का सौदा, समझी नहीं यह बात
अपना तो नारा हरदम हो जाता....बस थूक थूक के चाट
अरे ज़िल्लत सहने का शौक है इतना तो मानुष जीवन क्यूँ स्वीकारा
आत्मा मार के क्यूँ तुमने परमात्मा को पुकारा
अन्याय के आगे सीना चौड़ा करने में जो स्वाद था
तुमने अपने पीठ दिखाके, क्यूँ स्वाभिमान को जग के कोठे पे उतारा
नेता, अभिनेता, प्रतिबिम्ब हैं हम तुम की कमज़ोरी का
रीड की हड्डी हुए बिना, बिना बात की सीना ज़ोरी का
रेंगते सांप बन चुके सब लोग, छाती तानना कहाँ गया
बाज़ार में नीलम करके हमने, ज़मीर को बाजारू बना दिया
फिर रोते हैं तुम और मैं...क्यूँ नहीं देता इश्वर हमारा साथ
कैसा देगा वो भी जब हम रहे ...थूक थूक के चाट
थूक- चाट दरबारी मत कर न बे पेंदे का लोटा मत बन
जिधर स्वार्थ को मालिश मिलती उस ओर न जा, न छोटा बन
स्वाभिमान रहेगा तेरे भीतर तो वो सोना बनके चमकेगा
तेरे सिद्धांतों के कंधे पे ही कल का समाज संभलेगा
तू देखेगा एक इश्वर रुपी मानुष को दर्पण में हर दिन
मुस्कुरा पड़ेगी तेरी काया, आसमान देने देगा तारे चुन
मत कर अपनी आत्मा पे प्रहार मत कर उसपे ऐसा आघात
पीठ सीधी कर, सीना चौड़ा.....थूक थूक मत चाट
पीठ सीधी कर, सीना चौड़ा ....थूक थूक मत चाट
पीठ सीधी कर, सीना चौड़ा.... थूक थूक मत चाट
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