Thursday, November 10, 2011
ठप्पा ! Copyright ©
मापदंड, तराज़ू, कटघड़े
सब कर देते हैं एक बार तो खड़े
किसी की सुई से नापे जाते
किसी के कांटे पे होते निर्भर
मुक़द्दमा चला जाती दुनिया
नैतिकता होती नाप तोल कर
ठप्पा लगा देते दुनिया वाले
चरित्र और नीयत पर
कोई चरण छूके चले जाता
कोई लगाता दाग, कोई धब्बा
और लग जाता हम तुम पे
किसी और के मापदंड का ठप्पा
किसी की कचेहरी, किसी का दरबार
किसी और की लटकी तेरे ऊपर तलवार
किसी और का न्याय, किसी और के नियम
कोई और बन जाता तेरी सरकार
तराज़ू में तुल तुल तू कब तक लटका रहेगा
कब तक दरबारों में भटकता रहेगा
हर कोई अपना नज़रिया लेके पैदा होता
कब तक तू इनकी सूली चढ़ेगा
अपना न्यायाधीश खुद बन
खुद कर नैतिकता और नीयत का फैसला
हो जा खुद ही कचेहरी, खुद ही मुकद्दमा
झुके सर केवल उसके आगे तेरा रब्बा
न लगाने दे किसी और को
तेरे ऊपर उनका ठप्पा
कभी धर्म ने लाठी मारी तुझपे
कभी समाज ने किया प्रहार
कभी परिवार ने डांटा तुझको
कभी दिया सबने सिंघासन से तुझे उतार
और तू घबराया, ग्लानि भरली किसी और के कहने से
किसी और का नज़रिया मान कर तूने कीमत चुकाई
अपने आंसू की धरा बहने से
समय बदला और तुझपे लगे ठप्पे का रंग उतर गया
फिर सबने कमज़ोर मानुष को कटघड़े में फिर खड़ा किया
रोज़ सुनवाई, रोज़ कचेहरी , रोज़ तराजू से तोलम तोल
तेरी परछाई भी गिरवी हो गयी
पिया जो तूने इन सबका विषैला घोल
अरे उठ खड़ा हो, और देख अपने भीतर
जिस कमज़ोरी की वजह से तुझे इन्होने अपना निशाना बनाया था
उस कमजोरी को बहार फ़ेंक और
उठा तलवार , जिस जिस ने तुजेह ललकारा था
विशवास तेरा बोलेगा और आत्मा तेरी खिल उठेगी
जब तेरे गांडीव पे तेरे 'स्व' की प्रत्यंचा चढ़ेगी
तब मुक़द्दमा ख़ारिज होके आएगा तेरे पास
तेरे कर्म, तेरी सजा, बस तेरा है होगा फिर कटघड़ा
तू सलामी देगा, और तू ही लगाएगा बस अपना ठप्पा
तू सलामी देगा, और तू ही लगाएगा बस अपना ठप्पा!
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