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खरीद फरोख्त के ज़मानो में
बिकती जागीरों, बहते मयखानों में
भूत की मदिरा से भरते आज के पयमानों में
मैं रसीदें नहीं रखता
पुरानी मशालों से खाख हुए महलों में
किसी कोने में पड़े जंग लगे गहनों में
फीकी हो चली किताबों के पन्नो में
मैं रसीदें नहीं रखता
रसीदें जो,
कल के बहे रक्त और पुराने बहि खातों का प्रमाण हैं
जो बीते कल के टूटे दिलों के चकना चूर निशाँ हैं
जो कालिख पुते इतिहास का असल और उसमे बहे सूद की मिसाल हैं
मैं रसीदें नहीं रखता
इन रसीदों को फ़ेंक देने में भलाई है
पुरानी चिताओं से आज की लौ जो सबने जलाई है
जो लगे अपनी, पर हो चली पराई है
उसे संजोने में कोई बुधिमानी नहीं
वह खून की नदियाँ हैं, निर्मल पानी नहीं
रसीदें जो जेबों में पड़ी हैं उन्हें फ़ेंक दो तुम
पुराने हिसाबों से नए सपने मत बुन
पुराने सितार से कैसे बनेगी नयी धुन
फ़ेंक दो रसीदें , नहीं इनमे कोई गुण
रसीद कटवाना.. तो केवल अब भविष्य की
नयी स्याही से , नए रहस्य की
नयी उमंगें हों , नया भविष्य, नयी लकीरें
फ़ेंक दो पहले यह पुरानी रसीदें
फ़ेंक दो पहले यह पुरानी रसीदें
1 comment:
पुराने हिसाबों से नए सपने मत बुन
सटीक बात!
नवांकुर प्रस्फुटित हो तो बात बने!
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