Dreams

Friday, November 4, 2011

क्या आटा..... क्या रेत.... Copyright ©


दाने छोटे छोटे , पर कितने भिन्न भिन्न
महल बनाये कोई, सियासतें चलाये कोई
भाई ,भाई को दाने दाने के लिए मार गिराए
इन दानो की वजह से न जाने कितनी लाशें सोयी
इतिहास बने हैं इन दोनों के दानो से
कालिख निकली है वर्तमान की खानों से
भविष्य बना है इन दानो से
आटा और रेत ही खरीदे - बेचे, इंसानो को इंसानो से


चक्की में पिस पिस के गेंहूँ किस्मत कईयों की बना जाता है
और बड़े से बड़ा परबत, घिस घिस रेत हो जाता है
इस आटे के पीछे भैया कितने ही नीलाम हुए
रेत के महल बना बना कई मृत्यु की शय्या के मेहमान हुए
आटे के लिए गिरी सियासत, इतिहास ने छाननी से चंद दानो को छाना
रेत के महल बने भूत में जो, उन्हें वर्त्तमान ने खँडहर माना
क्या अंतर फिर इनमे , क्या है इनका सार
एक काया का निर्माण करे , दूजा ख़त्म हुआ गया थार


इन दानों को देखो ज़रा तुम गौर से
न जाने गुज़रे हैं यह कैसे कैसे दौर से
इन दोनों की खातिर कितनो ने बलिदान दिया
गोली खायी , ज़िल्लत झेली, खून का घूँट पिया
कहते हैं कण कण में भगवान् हैं
लगता तो ऐसा है अब, दाने दाने में शैतान है
जो लालच, घ्रिना, द्वेष मानुष में जगाता है
भई को भई से लडवा के, भाभी को दाव पे लगाता है
एक दाने को खाके दूजा जाना ही जब होना है
उसके लिए क्यूँ अपना ज़मीर खोना है
आटा और रेत के लिए, लगती बोली लगते दाम
मानव अपना ज़मीर बेचके हो जाता नीलाम
और फिर कहता जग यह है
दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम


इन दानों के पीछे अपनी आत्मा न नीलम करो
इन शैतानी दानों पे न अपने जीवन की शाम करो
यह दाने तो तुमको खरीदने की ताक़त रखते हैं
इनके पीछे न ईश के दिए जीवन को बदनाम करो
बहुत भेंटें हैं दी गयी , उस मौला के हाथों तुमको
क्या नंगा, क्या भूखा , क्या राजा क्या सेठ
अपनाओ और जो मिला है, अपनाओ और कोई भेंट
इसके पीछे भागो मत
क्या है आटा , क्या है यह रेत

1 comment:

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर चिंतन!