Sunday, January 30, 2011
The most silent silence!Copyright ©
this silence of yours is deafening
it hits me when i am alone
it chills me to the bone
but when i am guided elsewhere
i go for it for guidance
oh ! these closed doors
Oh! this most silent silence
But remember
i promised i would be always there
never leaving you in any way
so i will be there with you in this silence too
and maybe my silence breaks yours
maybe my tears
make the barren sands in my existence
make them replenished shores
this name and recognition of my words
however small they may be
i will save the words till you break your silence
save it till you come and embrace me
let this be the silence of my poetic semblance too
my words would not sing no more
my words would remain in my heart
i will let this silence be , silence to the core
when you will come back
i will sing you couplets of the yore
sonnets of time gone by
poems of my time spent with you, oh so pure
your silence is my silence too
the burden you bear
i shall share it with you
because i promised to love you
for ever
till my existence
my silent prayers
most silent silence
most silent silence
most silent silence!
Friday, January 28, 2011
हम....देते हैं !!!Copyright ©
जो हिम्मत का दम भरते हैं..
हम उन्ही के बस कायल हैं..
जो हुकूमतों को ललकारते हैं..
हम तो बस उनपे घायल हैं.....
........
थिरके पाँव तुम्हारे अगर जीत की धुन में
तो मान लेना ...
हम उन पाँव के ही बस पायल हैं!!!
सागर की गहराई का नाप जो लेते
हम उन्ही को बस नाव थमा देते
जो जीवन की बिसात पे अपनी ही चाल चलते हैं
हम उन घोड़ो पे ही बस अपना दाव लगा देते
……………..
दौड़े तुम भी अगर उस चाल से प्यारे
मैदान- ऐ-जंग में जो तो
हम ऐसे घुड़सवारों को ही
अपनी कमान देते हैं
मोहोब्बत पे जिनका हो भरोसा तो
हम उस हे लौ जलाने को दिया भी बन जाते हैं
जो इश्क में परवान चढ़ने को हो हरदम तैयार
हम उन ही बन्दों को ऐसे अरमान देते हैं
……………..
तुम्हे भी मोहोब्बत की लौ में अगर जलना हो
अपनी चाहत के लिए अगर आसमान पार करना हो
तो ऐसे इरादों को ही हम
उड़ान देते हैं…।
कल अगर तुम हार भी जाते हो
पर हार के भी तुम, तलवार फिर से उठाते हो
ऐसे जज़्बे , ऐसी तलवार को ही हम
अपनी हिम्मत और धार देते हैं
…………….
फ़िक्र मत कर तू अब तक अगर हारा ही हारा है
फ़िक्र मत कर तू अब तक अगर हारा ही हारा है
ऐसे बादशाहों को ही
हम अपना ताज देते हैं!
Thursday, January 27, 2011
जलसा !!!! Copyright ©
आज हवाओं में है जलसा
सूरज की गरमी का जलसा
मदमस्त हाथी मना रहे जलसा
कीट पतंगों का भी जलसा
जलसा है हारी किस्मत का
जलसा है जीते विश्वास का
जलसा पूरे हुए इंतज़ार का
जलसा इस मजमे , इस बाज़ार का
आज जलसा है हारे हुक्मरानों का
आज जलसा हलके हुए भारों का
आज जलसा जीत का
आज जलसा टूटी पुरानी रीत का
जलसा प्रीत का
जलसा गीत का
जलसा मेरा
जलसा मेरे मीत का
अब जलसा ही
जलसा
जलसे का जलसा
ऐसा या वैसा
जलसा ही जलसा
Wednesday, January 26, 2011
कविवर Copyright ©
कविवर अब तो थम जाओ
कितने ढाओगे
पंग्तियों के कितने धनुष
कितने शब्दों के बाण चलाओगे
सोच के सागर की गहराई से तुमने
इतने मोती हैं निकाले
समाज का प्रतिबिम्ब बन गए
कितने चेहरे हैं आईने में उतारे
कविवर यह निरंतर खोज
कब तक है जारी
कब तक आसमान पे तकते रहोगे
कब तक है कंधो में बोझ भारी
कवि तो हम कहते हैं
तुम दार्शनिक हो गए
सारे खेल समझ लिए
सब में पारंगत हो गए
मैं तो हरदम चलते रहने
की धुन में हूँ पड़ा
गिरुं चाहे सम्भ्लूं
मैं तो शिखर की ओर ही बढ़ चला
आ मेरे संग तू भी
लहरें क्यूँ हैं , ऐसी क्यूँ हैं वैसी क्यूँ हैं..
ऐसे सवाल मत कर..
या तो संग बह चल
या चीर के उस पार निकल
Tuesday, January 25, 2011
गणराज्य Copyright ©
लाल किले को समझके ताज
सारी तोपें तनी होंगी
नयी वेश भूषा में
गोरखा, गढ़वाल और अन्य टोलियों की
छाती वीरता के तमको से सजी होंगी
झांकियां भी होंगी
हर प्रांत की
बच्चों का भी मेला होगा
राष्ट्रपति भी सलामी लेने
घर से अपने निकला होगा
गणतंत्रता दिवस
को प्रणाम करने के लिए
आज हर भारतीय दिल बोला होगा
जय हिंद जय हिंद का नारा
हर दिल में आज एक अलग ही शोला होगा
पिछले बरस भी यही हुआ था
इस बरस भी वोह ही होगा
गणतंत्र शब्दकोष मात्र का
एक शब्द एक पन्ने में कहीं छुपा होगा
२६ जनवरी को पढ़ा जाएगा
और फूलों से सुसज्जित होगा
बाकी दिन हाहाकार और
दारिद्रय का बस चोगा होगा
इस बरस आओ गठन करें
ऐसा गणराज्य
कि राज पथ सा सुसज्जित
हो इसका हर मार्ग
हो उन तोपों सी हर भारतीय की
छाती तनी
और बच्चों की किलकारी समान
हो सबकी झोली भरी
सैनिक इस बरस न कोई कुर्बान हो
और एकता, सद्भावना और शांति
का हर एक पे वरदान हो
सैनिक की वर्दी सा हो
हर कोना भारत का हर कोना हरा भरा
सड़के सारी स्वच्छ हों
और हर गली हर हुमल्ला चमके
हर स्थान भारत का हो जैसे तमके
मानव मन हो द्वेष रहित और
लहलहा उठे यह अथाह धरा
नेताजी भी सैनिको की भाँती
गर्व से कह सकें " वीर भोग्य वसुंधरा"
इस गणराज्य शब्द को
शब्दकोष में न बस रहने दो
न ही एक दिन बस याद करो
हर दिन देश प्रेम की धारा बहने दो
जो लहू बहा इसे बनाने में
उसका मूल्य पहचानो, रचो ऐसा राज्य
कि विश्व दे सलामी
जन गन मन का नारा बाजे हर ओर
और कहदे
नहीं भारत सा गणराज्य
नहीं भारत सा गणराज्य
नहीं भारत सा गणराज्य!
Monday, January 24, 2011
Unparalleled Parallelism.........Copyright ©
why when the two train tracks
going to the same end
same direction
same directional trend
never meet?
their paths are the same
and to eternity distanced
they remain
why this chasm
why this unparalleled parallelism
this is because
one is not complete
without the other
both rails can not function
if they do not function together
even though similar in nature
they never..converge
but they are still together
but do not even diverge
this is how the nuptial companionship works
both come together for the same function
but have their individuality maintained
they go to their destination together
and that's how the togetherness is sustained
so all you people who are in the nuptial bond
and feel that the other does not respond
remind yourself to accept the parallelism
and maintain the closeness
and not mistake it to be a chasm
for you are the same in function
even though never fully you meet
but you carry the life's train
so effortlessly
and the end you happily greet
this small distance between you
is the space that you need to
love and respect and grow with each other
your paths lead the same way
never forget
togetherness this way is a magnificent prism
your job is to
respect and understand this
unparalleled parallelism
unparalleled parallelism
unparalleled parallelism!
The Last Verse ! Copyright ©
It was life for me
to be able to
pen down all i could think of
all i could feel
and all i saw
to light up the sun at will
and to make the
snow thaw
but since i am waiting for you
to come back
i shall hold back
on all that i can perceive
and make the paper
alive
make the clouds sing
make the sun smile
and the love thrive
so let these be the last
lines that will come out
of my pen
till you come back
and set my life ablaze
with that beatific smile
that intense gaze
anything that will come again
and will ever serve
will be when you come back
so let this be the
last verse
the last verse
Friday, January 21, 2011
Your Dictionary....Copyright ©
people call me many things
from full of self
to arrogant
from directionless
to indulgent
but when you call me
full of self
its different, cuz i know
it means you tell me
"i like it that you know so much bout yourself,
most people don't"
when you call me arrogant
i can see how confident i think i am
directionless
you mean the only direction i got , is you
and indulgent in only thing i am,
in You
so call me names
or what you will
just call me 'yours'
and give me my fill
cuz i know
you won't let me go
will 'claim' me
and will to the world show
so,
arrogant, directionless or arrogant it be
oh i could become
every word in YOUR dictionary
oh i could become
every word in YOUR dictionary
oh I could become
every word in Your dictionary
Thursday, January 20, 2011
It does not Matter......!!! Copyright ©
it does not really matter
if you have all these clustered thoughts
these confusions
that this love has brought
all you have to do is believe
in the goodness and godliness
of people who love
because love is all above
i know it is hard for you to fathom
my love and my devotion for thee
i know its tearing you apart
to understand the purpose HE has
but let me tell you one thing and one thing alone
nothing did shine in my life like you have shone
it does not matter how i feel
all i know is you are the one
all bliss, all happiness and all the fun
so even though you have these conflicts of
the mind and heart
i know you know it from the very start
that i am not ready and will never be ready to part
it may seem absurd
but like every living soul for me too
HE is the shepherd and i am one of his herd
i am sure you will know this
one of these days
and then your heart will too be ablaze
of the love i have kindled
you will be free and not bundled
till that time........
it doesn't matter if i am fine
cuz i know you will be mine
you will be mine
you will be mine!
Wednesday, January 19, 2011
थकान !!!! Copyright ©
थकान
क्यूँ बस.....थक गए
हो गए चूर
अभी तो सफ़र प्रारंभ ही हुआ है
अभी तो जाना बहुत दूर
पथिक प्यारे लड़खड़ाये कदम
तो हमारे भी हैं
राह में रोड़े आये हमारे भी हैं
थकान से ज्यादा थकान का
बोझ हो जाता था जब कभी
रोये गाये तो हम भी हैं
शारीरिक थकान हो चाहे मानसिक उदासी
हमेशा बच ही जाती है जान ज़रा सी
सब थक जाता हमारा फिर भी
आत्मा हरदम रह जाती प्यासी
यह प्यास ही कदम बढ़वा देती है
थोडा और.....थोडा और...करवा ही देती है
थकान सोच है
थकान एक मानसिक स्थिति है
थकान की अनुभूति होना
ज़रूरी है
थकान न हुई तो उस आख़री
शक्ति की बूँद का कैसे चलेगा पता
कैसे आत्मा की शक्ति का होगा ज्ञान
जब सारा मनोबल उस आख़री कण में हो बसा
जो थका नहीं उसने जीवन का अनमोल अमृत कहाँ चखा
तो कमर तोड़ प्रयास कर
और थकने से न घबरा
थकान तो ऊर्जा का स्रोत है
आखरी पड़ाव पाना
इसी थकान से ओतः प्रोत है
तो जी भर कर कर जो करना चाहता है
गले लगा ले थकान यदि सागर पार करना चाहता है
निकाल उस ऊर्जा को
कर उस आख़री बूँद का अभिनन्दन
जागने दे अन्दर का अंतिम स्पंदन
शरीर और मस्तिष्क को थकने दे
आत्मा की उस बूँद को आसमान तकने दे
हौसले की उस आख़री बूँद को शिखर चखने दे
विश्वास को चोटी पे ब्रह्मकमल रखने दे
तो खुद को...
थकने दे
थकने दे
थकने दे
Friday, January 14, 2011
धत तेरे की ! Copyright ©
हर बार ब्रह्मास्त्र उठाया अपना
पर गांडीव ही फिसल गया
प्रत्यंचा क्या चढ़ाएंगे
तरकस क्या संभालेंगे
लक्ष्य ही बदल गया
धत तेरे की
अथाह मरुस्थल के क्षितिज पर
मृग दिया दिखाई
दिल में उम्मीद जग आई
दौड़े उसकी ओर पूरे वेग से
पर मृगत्रिष्णा ही की अनुभूति हो पायी
धत तेरे की
परिंदों को उड़ते देख
मन में उड़ने की इच्छा उड़ आई
सोचा पंखों से क्या होगा
हौसले की है अपनी अंगडाई
पेंग लगायी
धूल ही धूल खायी
धत तेरे की
गहरे समुन्दर से मोती ले आने का
जोश भी जागा
हमने डुबकी लगाई
लहरों ने खेल खेला हमारे साथ
और बस केवल जल समाधि ही हो पायी
धत तेरे की
क्या यह सारे प्रयास और लक्ष्य
सारे ही सपने बेबुनियाद थे
या कल्पना के अश्वा बेलगाम थे
जो भी हो
हर बार यह ही आवाज़ निकली
धत तेरे की
धत तेरे की
कब तक ‘तेरे’ की धत करता रहूँगा
कब तक निराशा का रंग मढ़ता रहूँगा
कब तक डरता रहूँगा
पता नहीं
बस इतना पता है कि
अब गांडीव नहीं फिसलेगा
अब मृग प्रत्यक्ष दिखेगा
अब उड़ान होगी
ढूंढ लूँगा समंदर से मोती
दौड़ता रहूँगा जब तक हर इच्छा पूरी नहीं होती
जब तक नहीं पी लेता मदिरा सुनहरे सवेरे की
बोलना छोड़ नहीं देता
धत तेरे की
धत तेरे की
धत तेरे की!