Dreams

Monday, January 10, 2011

बीती रात.....Copyright ©


बीती रात के अँधेरे को हमने

सवेरे का तिलक लगा दिया

जो राख बच गयी थी रात की

उसको भभूत समझ के चढ़ा लिया


गहरी रात थी बहुत

भय का कोई ठिकाना न था

रौशनी की कोई किरण न थी

और रौशन होने का कोई बहाना न था



इन अंधेरों में मगर होता ऐसा कुछ

सुरूर है

कि दर्द की मादकता की पराकाष्टा तक

पहुंचाती ज़रूर है



रात के सन्नाटे को हमने

ठुमरी समझ के गा लिए

तरंग छेड़ी हमने भी

और दादरा ही गुनगुना दिया



बोल दो उन अंधेरों से जो साकी बन के आते हैं

हाथ में बस प्याले भर से ही सुरूर दे जाते हैं

उन अंधेरों को इस कदर रगों में बहा दिया

कौन है साकी, कौन पीने वाला…. रात को ही समझा दिया



हौसले होते होंगे लोगों के रात भर भटकने के

हमने उन अंधेरों को ही भटकना सिखा दिया

रौशनी के सहारे को तरसते होंगे सब

हमने तो इस काली घनी रात को ही चमका दिया



उजालों की रौशनी से जगमगायेगा जग तुम्हारा

हमने तो इन अंधेरों को ही अपना दिया बना लिया

सन्नाटे की बाती , तम का दिया

और भय को ही भयभीत बना दिया



कर गुजरने की तमन्ना जो चमकते सूरज में थी

हमने गुज़रे कल को ही चमकदार बना दिया

बीती रात की राख को

भभूत समझ के लगा दिया


करने दो लोगों को बीते कल की बातें
हम आने वाले कल की बात करेंगे......
जलने दो लोगों को कल की चिता में
हम तो कल की राख से ही कल का तिलक करेंगे...!


जो बीत गया है उसे बदलने नहीं हम वाले हैं

पर जो आएगा उसे हम अभी से संभाले हैं

जो उजालों की चाह रखते हैं उन्हें हमने यह समझा दिया

तम को पहले गले लगा लो फिर सूरज की राह तकते हैं



घबराओ मत तम से वो तो रौशन करने का बस एक बहाना है

अभी रात में भीग लो, कल तो रौशनी में ही नहाना है

न थर्राए कभी भी विश्वास तेरा चाहे अँधेरा ही अँधेरा हो

जैसे बीती रात बीती है वैसे हौसले से ही कल का सूर्या कल का सवेरा हो ....

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