
थकान
क्यूँ बस.....थक गए
हो गए चूर
अभी तो सफ़र प्रारंभ ही हुआ है
अभी तो जाना बहुत दूर
पथिक प्यारे लड़खड़ाये कदम
तो हमारे भी हैं
राह में रोड़े आये हमारे भी हैं
थकान से ज्यादा थकान का
बोझ हो जाता था जब कभी
रोये गाये तो हम भी हैं
शारीरिक थकान हो चाहे मानसिक उदासी
हमेशा बच ही जाती है जान ज़रा सी
सब थक जाता हमारा फिर भी
आत्मा हरदम रह जाती प्यासी
यह प्यास ही कदम बढ़वा देती है
थोडा और.....थोडा और...करवा ही देती है
थकान सोच है
थकान एक मानसिक स्थिति है
थकान की अनुभूति होना
ज़रूरी है
थकान न हुई तो उस आख़री
शक्ति की बूँद का कैसे चलेगा पता
कैसे आत्मा की शक्ति का होगा ज्ञान
जब सारा मनोबल उस आख़री कण में हो बसा
जो थका नहीं उसने जीवन का अनमोल अमृत कहाँ चखा
तो कमर तोड़ प्रयास कर
और थकने से न घबरा
थकान तो ऊर्जा का स्रोत है
आखरी पड़ाव पाना
इसी थकान से ओतः प्रोत है
तो जी भर कर कर जो करना चाहता है
गले लगा ले थकान यदि सागर पार करना चाहता है
निकाल उस ऊर्जा को
कर उस आख़री बूँद का अभिनन्दन
जागने दे अन्दर का अंतिम स्पंदन
शरीर और मस्तिष्क को थकने दे
आत्मा की उस बूँद को आसमान तकने दे
हौसले की उस आख़री बूँद को शिखर चखने दे
विश्वास को चोटी पे ब्रह्मकमल रखने दे
तो खुद को...
थकने दे
थकने दे
थकने दे
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