Dreams

Tuesday, January 11, 2011

रोक सके तो रोक ले ऐ आसमां Copyright ©


रोक ने रुक सकें तो रोक ले ऐ आसमां

हम खड़े हैं बाहें फैलाये तेरे सामने यहाँ

थाम सके तू वेग को मेरे तो बता दे ज़रा

तय्यारी किये हम भी खड़े हैं…तू बता आना कहाँ



काले बादलों से घबराया करते थे कभी हम बे इन्तेहा

अब बरस भी जाए मेघ तो हमे कहाँ अब परवाह

आज़ाद हो गए हम इस गरज-बरस के खेल से

अब कहाँ है तेरी आवाज़ अब कहाँ तेरा हौसला



तेरे बड़े होने की हमे अब परवाह नहीं

तेरे गुस्से से गुर्राने की अब हमे परवाह कहाँ

ताने छाती अपनी हम अब तो केवल तुझे घूर रहे

मुट्ठी में यह सारी कायनात , जेबों में सारा जहाँ



जो तेरा नीला चेहरा कल हमने देखा था

उसे भी फीका कर के बढ़ गए हम ज़रा

तेरे सामने अब झुक जाएँ तो बोल देना हमे बेवफा

तू चाहे हो खुश , तू चाहे हो खफा



चाल अपनी खामोश नहीं अब…

चाहे कितना भी तू अब गुर्रा

समय हमारी मुट्ठी में अब

तू अभी तक भी नहीं समझा



छत मान लेते तुझे हम भी

अगर तू न देता कभी हमे जीने की सलाह

ईश मान लेते तुझे

अगर तू विश्वास करता हमपे ज़रा

पर अब जब तूने खुल कर जंग छेड़ ही दी तो

हम भी क्यूँ चुप रहे

तू भी अब हमारे प्रहार से भिद जाए

तेरा भी अब खून बहे



ए मुसाफिर तान छाती और ललकार दे तू भी ज़रा

आसमां यदि मित्र न हुआ तेरा तो डट कर कर उसका सामना

बेरहम हुआ हो कभी भी तुझ पर भी यह आसमा

गरज जा तू भी इसपे और शोले इस पर भी बरसा



दब गया अगर तू इस से तो यह तुझे हरदम दबा जाएगा

गरज बरस कर तेरी तकदीर को घोल के पी जाएगा

तो उठा तलवार और लगा दहाड़ इस आसमा पे चढ़ाई कर

नहीं तो यह आसमा बिना बताये तुझे भी खा जायेगा



एक बार फिर कह दे इस से………



रोक ने रुक सकें तो रोक ले ऐ आसमा

हम खड़े हैं बाहें फैलाये तेरे सामने यहाँ

थाम सके तू वेग को मेरे तो बता दे ज़रा

तय्यारी किये हम भी खड़े हैं…तू बता आना कहाँ



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