बुद्ध निराश होगा
समाधी लगाये
चिंतन तो आज खो ही गया
बोधिसत्त्व तो हैं नहीं अब
बोधिचित्त भी लुप्त हो जाएँ
आज कोई बुद्ध होना नहीं चाहता
त्याग का मार्ग चुनना नहीं चाहता
समाधी तो लगाना दूर की बात है
ध्यान भी किसी से न आजकल हो पाए
मोक्ष की प्राप्ति जीवन मार्ग होता था कभी
आज मोक्ष केवल हारे हुए मनुष्यों का शब्द है
इस भौतिक जीवन स्पर्धा में
बुद्ध स्वयं निशब्द है
स्व चिंतन खो गया अब
खो गया मार्ग भी
स्व का झूठा चोगा धारे
स्वार्थ ही केवल पनप रहा
परिश्रम, पुरुषार्थ और पौरुष तो विलुत हो गए
केवल स्वर्ण सिक्का खनक रहा
सिद्धार्थ ने भी कर्म किया था पहले
फिर त्याग किया
दलील देने वाले कह रहे
हमने भी तो कर्म किया
पर त्याग भाव का अर्थ जैसे
निर्जीव सा हो रहा
धर्म के नाम पे सर काटे
ईश के नाम पे नरसंघार हो रहा
बुद्ध निराश बैठा समाधी में
बोधिसत्त्व का भ्रूण कुचलता देख रहा
बुद्ध पूजन मात्र से
बुद्ध होता न कोई
बोधिसत्त्व का नाम जप के
बुद्ध होता न कोई
पहले सिद्धार्थ बन जा बन्दे
कर्म का पहेन चोगा
त्याग धन धान्य
परिवार जो तूने भोगा
लगा समाधी
फिर बुद्ध का वंशज होगा
आकास्गर्भ या क्षितिगर्भ
हो नागार्जुन या हो मंजुश्री
बोधिसत्व की उपाधि
बुद्ध की समाधि
बोधिचित्ता से कर प्रारंभ
धर्म ज्ञान और त्याग भाव से
कर जीवन व्यापन
दया भाव हो और हो प्रेम निष्टा
जीवन का आचरण
फिर हो जा ध्यानमग्न और
हो जा दंडवत
बुद्ध के चरण
बुद्ध के चरण
बुद्ध के चरण