Dreams

Monday, December 27, 2010

तेज ...Copyright ©


चमकदार

उजला, स्वच्छ, रौशन

शांत,तीखा ओजस्वी

यह तेज

मुख चन्द्र को सूर्य की भाँती

उज्जवल करता यह तेज

हर परिस्थिति को दुस्साहस से घूरता

यह तेज

पथ में कांटें हो चाहे हो

सुनहरी सेज

सारे गम सारे तम को दूर भगा दे

यह ओजस्वी तेज



सम्राट अशोक, सिकंदर

पारंगत बुद्ध

सशक्त राणा प्रताप

सब धारक थे इस तेज के

मुख चन्द्र पे चमकाते

यह तेज थे

खड्ग इनकी भी उस तेज के बल से

तेजस्विनी हो जाती थी

लहू मांगती

वो तलवार

वर्चस्व का डंका बजाने

अश्वमेध का शाख्नाध हो जाता

इस तेज के सहारे



ताजपोशी और सिंघासन पे

बैठने से ही कोई सम्राट नहीं होता

वो ओजस्वी तेज तो सदियों में

एक बार है चमकता

कोई उसका बीज नहीं बोता

सम्राटों का तेज

बाध्शाहो की सेज

तेजस्विनी तलवार

ओजस्वी प्रहार

यह सब उस तेज की हैं बदौलत

न कोई शाही दौलत

ना ही कोई बादशाहत



यह दैविक प्रकाश

यह चका चौंध मुख पे

ये रौब

यह सूर्य सा उज्वल तेज

दिखा आज…

प्रतिबिम्ब में

मेरा प्रतिबिम्ब था या कुछ और

ज्ञात नहीं

पर तेज था चारों ओर



शायद है वो तेज सब में

बस कुछ लोग उसे चमका पाते

मैं तो चमकाने को आतुर हुं

आप भी क्यूँ उसे नहीं चमकाते




तेज लौ है तेज है अग्नि

तेज ज्वाला और तेज है गर्मी

रौशनी दे जाए

भस्म कर जाए

तेज स्थिर है तेज है गतिमय

तेज है रुका हुआ समय

तेज योग भी तेज ज्ञान है

तेज प्रेम और तेज ध्यान है

तेज शौर्य भी तेज है भक्ति

तेज है अन्दर की शक्ति

तेज बुद्द भी तेज ब्रह्म भी

तेज पुरुषार्थ ,तेज श्रम भी

तेज है स्पंदन आत्मा का

तेज है बंधन परमात्मा का

तेजस्वी भवः

ओजस्वी भवः

तेजस्वी भवः


1 comment:

रवि रतलामी said...

अच्छी रचना है.