तितलियाँ उड़ गयी
परिंदे भी
पंख फैला के दूर गगन में
हवाओं की पेंग ली
मैं कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
जकड़ा बंधनों में
नसे ऐनठ गयी
कलाई में छाले पड़ गए
उमीदें भी बैठ गयी
उड़ने की चाह
और उड़ने की काबीलियत में
फर्क है मियाँ
इस चाह ने हौसला तो दिया
लेकिन पर काट गयी
सोचा था निगाह आसमान पे होगी
हवाओं के साथ अठखेली खेलूँगा
हवाओं ने रुख मोड़ लिया
पंख कुतर गयी
अब क्या कर सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
तूफ़ान देखे हैं कई मैंने
पंख वैसे ही फैलाये थे
लेकिन यह हवाएं कुछ और हैं
इन्हें कैसे चीर सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
इन हवाओं में ज़हर है
ज़हर के प्याले तो मैंने भी पिए हैं
इन हवाओं में कहर है
कहर तो बहुत मैंने भी सहे हैं
कैंची लेके निकली है यह हवाएं
मेरे पंख कुतरने को
बच भी गया इसके वेग से तो भी
फिर से उड़ान कैसे भरूँगा
मैं कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
पर हैं मेरे
हौसला भी है
पर पतंग बन के रह गया
डोर बहुतों के हाथ में है
इस डोर से बंध के रह गया
काट दो डोर एक बार तो
या ढील तो मांजे को
खुद से उड़ तो सकूंगा
नहीं तो बंध के रह जाऊंगा मैं
न जाने कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
मैं कब उड़ सकूंगा
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