सीने में जलन
आँखों में खालीपन सा क्यूँ है
भीड़ में
यह भगीरथ अकेला सा क्यूँ है
त्योहारों की बेला में
चमकते रंगों में
यह भगीरथ बेरंग सा क्यूँ है
सुनहरे सूरज की तलाश में
यह भगीरथ अँधेरा सा क्यूँ है
भगीरथ अकेला सा क्यूँ है
हिमालय की छाती चीर कर
गौमुख की कोख से भागीरथी
निकाल लाने का जो दम रखता है
वो आज शांत सा क्यूँ है
हवाओं का रुख मोड़ जाए जो
भगीरथ वोह आज
प्रशांत सा खामोश क्यूँ है
इस हल्ले, इस गूँज यह मेला सा जो है
उसमे भगीरथ
अकेला सा क्यूँ है
अकेला सा क्यूँ है
प्रयास की बरछी
और विश्वास की कटार हाथ में थामे
जो गया था माँ गंगा का अमृत लाने
शिव की जटाओं से निकले दैविक जल को
इस विश्व को अनुभूति करवाने
उसके हाथ खाली क्यूँ हैं
जिसके संकल्प से पूरा विश्व
गंगाजल का अमृत पी पाया था
जी पाया था
वोह मृत…
वो निर्जीव सा क्यूँ है
इस बरसते पानी में
वो भगीरथ
सूखा सा क्यूँ है
भगीरथ…
अकेला सा क्यूँ है
अकेला सा क्यूँ है
अकेला क्यूँ है
छिले विश्वास
और उधडे शौर्य
ठिठुरते आत्मविश्वास
और मुरझाई जीने की आस
क्यूँ है
भागीरथ तो भूगोल बदल आया था
इतिहास रच आया था
भूत , वर्तमान और भविष्य के
बीच सन्नाटे में फसा क्यूँ है
भगीरथ अकेला क्यूँ है
शिव देख रहा होगा
माँ गंगा भी रो रही होगी
जीवन प्रदान किया जिसने
वोह धारा भी इस अकेलेपन में
रो रही होगी
पूछ रही होगी…..
भगीरथ…
तू…खोया क्यूँ है..
रोया क्यूँ है
अकेला क्यूँ है….
अकेला क्यूँ है….
1 comment:
आज आलम यह है कि हर कोई भ्रष्टाचार कि रोटियां सेंकने में मशगुल है तो भागीरथ अकेला ही पड़ेगा कोई नहीं है जो भागीरथ बने या उसका साथ दे
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