Dreams

Tuesday, December 28, 2010

बोधिसत्त्व ....Copyright ©


बुद्ध निराश होगा

समाधी लगाये

चिंतन तो आज खो ही गया

बोधिसत्त्व तो हैं नहीं अब

बोधिचित्त भी लुप्त हो जाएँ

आज कोई बुद्ध होना नहीं चाहता

त्याग का मार्ग चुनना नहीं चाहता

समाधी तो लगाना दूर की बात है

ध्यान भी किसी से न आजकल हो पाए



मोक्ष की प्राप्ति जीवन मार्ग होता था कभी

आज मोक्ष केवल हारे हुए मनुष्यों का शब्द है

इस भौतिक जीवन स्पर्धा में

बुद्ध स्वयं निशब्द है

स्व चिंतन खो गया अब

खो गया मार्ग भी

स्व का झूठा चोगा धारे

स्वार्थ ही केवल पनप रहा

परिश्रम, पुरुषार्थ और पौरुष तो विलुत हो गए

केवल स्वर्ण सिक्का खनक रहा



सिद्धार्थ ने भी कर्म किया था पहले

फिर त्याग किया

दलील देने वाले कह रहे

हमने भी तो कर्म किया

पर त्याग भाव का अर्थ जैसे

निर्जीव सा हो रहा

धर्म के नाम पे सर काटे

ईश के नाम पे नरसंघार हो रहा

बुद्ध निराश बैठा समाधी में

बोधिसत्त्व का भ्रूण कुचलता देख रहा



बुद्ध पूजन मात्र से

बुद्ध होता न कोई

बोधिसत्त्व का नाम जप के

बुद्ध होता न कोई

पहले सिद्धार्थ बन जा बन्दे

कर्म का पहेन चोगा

त्याग धन धान्य

परिवार जो तूने भोगा

लगा समाधी

फिर बुद्ध का वंशज होगा




आकास्गर्भ या क्षितिगर्भ

हो नागार्जुन या हो मंजुश्री

बोधिसत्व की उपाधि

बुद्ध की समाधि

बोधिचित्ता से कर प्रारंभ

धर्म ज्ञान और त्याग भाव से

कर जीवन व्यापन

दया भाव हो और हो प्रेम निष्टा

जीवन का आचरण

फिर हो जा ध्यानमग्न और

हो जा दंडवत

बुद्ध के चरण

बुद्ध के चरण

बुद्ध के चरण


Monday, December 27, 2010

तेज ...Copyright ©


चमकदार

उजला, स्वच्छ, रौशन

शांत,तीखा ओजस्वी

यह तेज

मुख चन्द्र को सूर्य की भाँती

उज्जवल करता यह तेज

हर परिस्थिति को दुस्साहस से घूरता

यह तेज

पथ में कांटें हो चाहे हो

सुनहरी सेज

सारे गम सारे तम को दूर भगा दे

यह ओजस्वी तेज



सम्राट अशोक, सिकंदर

पारंगत बुद्ध

सशक्त राणा प्रताप

सब धारक थे इस तेज के

मुख चन्द्र पे चमकाते

यह तेज थे

खड्ग इनकी भी उस तेज के बल से

तेजस्विनी हो जाती थी

लहू मांगती

वो तलवार

वर्चस्व का डंका बजाने

अश्वमेध का शाख्नाध हो जाता

इस तेज के सहारे



ताजपोशी और सिंघासन पे

बैठने से ही कोई सम्राट नहीं होता

वो ओजस्वी तेज तो सदियों में

एक बार है चमकता

कोई उसका बीज नहीं बोता

सम्राटों का तेज

बाध्शाहो की सेज

तेजस्विनी तलवार

ओजस्वी प्रहार

यह सब उस तेज की हैं बदौलत

न कोई शाही दौलत

ना ही कोई बादशाहत



यह दैविक प्रकाश

यह चका चौंध मुख पे

ये रौब

यह सूर्य सा उज्वल तेज

दिखा आज…

प्रतिबिम्ब में

मेरा प्रतिबिम्ब था या कुछ और

ज्ञात नहीं

पर तेज था चारों ओर



शायद है वो तेज सब में

बस कुछ लोग उसे चमका पाते

मैं तो चमकाने को आतुर हुं

आप भी क्यूँ उसे नहीं चमकाते




तेज लौ है तेज है अग्नि

तेज ज्वाला और तेज है गर्मी

रौशनी दे जाए

भस्म कर जाए

तेज स्थिर है तेज है गतिमय

तेज है रुका हुआ समय

तेज योग भी तेज ज्ञान है

तेज प्रेम और तेज ध्यान है

तेज शौर्य भी तेज है भक्ति

तेज है अन्दर की शक्ति

तेज बुद्द भी तेज ब्रह्म भी

तेज पुरुषार्थ ,तेज श्रम भी

तेज है स्पंदन आत्मा का

तेज है बंधन परमात्मा का

तेजस्वी भवः

ओजस्वी भवः

तेजस्वी भवः


Sunday, December 26, 2010

मैं कब उड़ सकूंगा.... ??Copyright ©


तितलियाँ उड़ गयी

परिंदे भी

पंख फैला के दूर गगन में

हवाओं की पेंग ली

मैं कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा




जकड़ा बंधनों में

नसे ऐनठ गयी

कलाई में छाले पड़ गए

उमीदें भी बैठ गयी

उड़ने की चाह

और उड़ने की काबीलियत में

फर्क है मियाँ

इस चाह ने हौसला तो दिया

लेकिन पर काट गयी

सोचा था निगाह आसमान पे होगी

हवाओं के साथ अठखेली खेलूँगा

हवाओं ने रुख मोड़ लिया

पंख कुतर गयी

अब क्या कर सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा



तूफ़ान देखे हैं कई मैंने

पंख वैसे ही फैलाये थे

लेकिन यह हवाएं कुछ और हैं

इन्हें कैसे चीर सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा



इन हवाओं में ज़हर है

ज़हर के प्याले तो मैंने भी पिए हैं

इन हवाओं में कहर है

कहर तो बहुत मैंने भी सहे हैं

कैंची लेके निकली है यह हवाएं

मेरे पंख कुतरने को

बच भी गया इसके वेग से तो भी

फिर से उड़ान कैसे भरूँगा

मैं कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा



पर हैं मेरे

हौसला भी है

पर पतंग बन के रह गया

डोर बहुतों के हाथ में है

इस डोर से बंध के रह गया

काट दो डोर एक बार तो

या ढील तो मांजे को

खुद से उड़ तो सकूंगा

नहीं तो बंध के रह जाऊंगा मैं

न जाने कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा

मैं कब उड़ सकूंगा


Saturday, December 25, 2010

अकेला भगीरथ......Copyright ©


सीने में जलन

आँखों में खालीपन सा क्यूँ है

भीड़ में

यह भगीरथ अकेला सा क्यूँ है

त्योहारों की बेला में

चमकते रंगों में

यह भगीरथ बेरंग सा क्यूँ है

सुनहरे सूरज की तलाश में

यह भगीरथ अँधेरा सा क्यूँ है

भगीरथ अकेला सा क्यूँ है



हिमालय की छाती चीर कर

गौमुख की कोख से भागीरथी

निकाल लाने का जो दम रखता है

वो आज शांत सा क्यूँ है

हवाओं का रुख मोड़ जाए जो

भगीरथ वोह आज

प्रशांत सा खामोश क्यूँ है

इस हल्ले, इस गूँज यह मेला सा जो है

उसमे भगीरथ

अकेला सा क्यूँ है

अकेला सा क्यूँ है



प्रयास की बरछी

और विश्वास की कटार हाथ में थामे

जो गया था माँ गंगा का अमृत लाने

शिव की जटाओं से निकले दैविक जल को

इस विश्व को अनुभूति करवाने

उसके हाथ खाली क्यूँ हैं

जिसके संकल्प से पूरा विश्व

गंगाजल का अमृत पी पाया था

जी पाया था

वोह मृत…

वो निर्जीव सा क्यूँ है

इस बरसते पानी में

वो भगीरथ

सूखा सा क्यूँ है

भगीरथ…

अकेला सा क्यूँ है

अकेला सा क्यूँ है



अकेला क्यूँ है

छिले विश्वास

और उधडे शौर्य

ठिठुरते आत्मविश्वास

और मुरझाई जीने की आस

क्यूँ है

भागीरथ तो भूगोल बदल आया था

इतिहास रच आया था

भूत , वर्तमान और भविष्य के

बीच सन्नाटे में फसा क्यूँ है

भगीरथ अकेला क्यूँ है



शिव देख रहा होगा

माँ गंगा भी रो रही होगी

जीवन प्रदान किया जिसने

वोह धारा भी इस अकेलेपन में

रो रही होगी

पूछ रही होगी…..

भगीरथ…

तू…खोया क्यूँ है..

रोया क्यूँ है

अकेला क्यूँ है….

अकेला क्यूँ है….


Thursday, December 23, 2010

Belated Happy Birthday....Copyright ©



Oh...
I did not wish thee
On your Birthday
but I did not forget
I was only waiting to
tell you on this day
so that when all have wished
i can silently and purely pray
and exclusively say
Happy Birthday...Happy Birthday



Let me tell you this thing
on this day
that your so called special day has past
but i raise my sails of words today
and hoist the mast
so that each day you read this
is special as The day
and not just a worldly mold
made of clay
Happy Birthday....Happy Birthday



Men would have sung of your beauty
and women would have been jealous
when they saw you in your Birthday dress
when you would have looked precious
may my words have the same
resounding vibration and sing of the same
may they be beads of the necklace
and the string holding your flowing mane
may they flow in the same for as your hips sway
Happy Birthday.....Happy Birthday



So today
May be late
may be of no importance
may be of no value
of no resemblance
to YOUR special day
but still...
this day I pray
and say...
Happy Birthday..Happy Birthday
Happy Birthday..Happy Birthday
Happy Birthday..Happy Birthday.!!!

Wednesday, December 22, 2010

100% Smile....Copyright ©


If the 100% brings a smile to your face
who am I to take it away
If that's where your path is
who am I to make you sway



what i have felt with you
was and is divine
the thought of it still makes me smile
and since you have your heart
in the completeness of it all
let your 100% smile
be the Gift of the Nile




Just like The three wise men
who wandered this earth
let me be wise too and
make this a moment of happiness for you
a moment of mirth



its been a pleasure being with you
and i don't want it to go
maybe its too hard for me
but i already promised you
that i will never show



your smile has an effect on me
it makes me alive again
and it gives me the power
to fully use the gift of the pen
i had wished you never took that away
i had wished you would smile
at me always the same way



but do not take this otherwise
i am only trying to be wise
the words and the poetic semblance
are a solace
and a vent
even though not complete
even though not 100%
even though not 100%
even though not 100%

Tuesday, December 21, 2010

Nothing More.....Copyright ©


I know my words do not have
a price tag
they are not jewels or diamonds
in a bag...
but if they make you smile
and make you jump
i know i have the precious gift
the Gift of the Nile.....


jewels you'll have and
diamonds you'll wear
and look amazing
in a white dress..i swear
but words are all i can give you
and word only i will
that's all i can to
make you thrill


let my words be the holding
string of the jewels you'll adorn
let they be the soul
when to ' I do ' you'll be sworn
may they be the hem of your skirt
flowers you hold
and may they be a part of your beauty
and let the whole world behold


when you will be on that altar
to be duly wed to Mr So and So
may my words sing
of the happiness which will grow
may those words
be a prayer for your life
and may they be the
groomsmen of whom you'll be the wife


may my words be the
toys for your children
to make them smile
and make them laugh
just like they did to their mother


all these words are just
what is left in me that is pure
sure they don't have a price tag
but i have only these
nothing more..
nothing more
nothing more...