Dreams

Friday, January 7, 2011

कोष्टक ( .......) !Copyright ©


शब्द जाल में भटक रहे सब

बोझ के नीचे रहे दब

इस भेड़ चाल में चलते चलते

खोज रहे हैं सब के सब

इस भीड़ भड़क्के में मैं भी रमता

पर मैंने अपने अस्तित्व को एक अलग पथ पे

दौड़ा दिया

सब आखर एक तरफ हैं

मैंने कोष्टक खुद को बना दिया



जो सबका पथ है और जो सब की है राह

जिस ओर बहती सबकी कश्ती,

जिस ओर सबका प्रवाह

उसके मध्य में चमकता हुआ

एक सत्य मैं बन जाऊंगा

और इस सत्य के उजले शब्दों को

कोष्टक में समां जाऊंगा

कोष्टक में समां जाऊंगा



कोष्टक रूकावट नहीं है

कोष्टक तो अलंकार है

एक मेहेत्वपूर्ण हथियार है

जो मूल को बचाए रखता है

पूर्ण सत्य को समाये रखता है

अल्प विराम पे पूर्ण विराम लगने से पहले

एक लगाम लगाए रखता है

निर्जीव धारा में प्राण मैं दे जाऊंगा

कोष्टक में समां जाऊंगा

कोष्टक में समां जाऊंगा




सीधा सीधा तो सब करते हैं

प्रारंभ से अंत तक

इस जीवन रुपी वाक्य में

कुछ अक्षर कह जाते हैं

परन्तु

अपनी साधना, परिश्रम और नवीन सोच को

जो इस वाक्य में समां पाए

एक अद्भुत , अनुपम अनुभव को

सब तक पहुंचा जाए

नीरस वाक्य में

ब्रह्मज्ञान और बुध का सन्देश

दिखा पाए

केवल वो ही इस अनोखे कोष्टक में

अपना नाम दर्ज कर जाए

अपना अस्तित्व दर्ज कर जाए

कोष्टक को गौरान्वित बना जाए

स्वयं एक कोष्टक बन जाए

स्वयं एक कोष्टक बन जाए


1 comment:

Er. सत्यम शिवम said...

Bhut hi sundar rachna...bhut saarthak aur arthwaan..nice..