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स्तम्भ चाहे कितना खोखला हो गया हो
कहलाता स्तम्भ ही है
शेर चाहे कितना बूढा हो गया हो
कहलाता सिंह ही है
लहू चाहे रगों में दौड़े
चाहे बह जाए ऐसे ही
कहलाता लहू ही है
ईमान चाहे कितना भी डगमगाए
रहता इमान ही
दहाड़ चाहे धुंधली हो जाए
रहेगी दहाड़ ही
चाहे ढह जाए सारी काया
रहेगा खड़ा पहाड़ ही
विश्वास न हो किसी को चाहे
न हो भरोसा
चाहे हर मोड़ पे तुमको
किसे ने भी हो कोसा
तुम वो हो जो तुम हो
तुम इसका प्रमाण चाहे
दो न दो
तुम्हारी सारी शक्ति , सारी माया
अन्दर की सुन्दरता , बाहर की काया
विश्वास है तुम्हारा
प्रयास है तुम्हारा
व्यक्तित्व है तुम्हारा
कईयों ने रौंदा
कईयों ने खंडित किया
बरछी, भाले , कटार
तलवार, चाबुक से
दण्डित किया
डरा भी मैं
घबराया भी
कुछ संभला भी
कुछ डगमगाया
लेकिन
उस सपने से न विश्वास
हटाया
अपना धैर्य खोने न पाया
कितनो ने ही किया पराया
यह स्तम्भ न टूटने पाया
कितनो ने चाहे जलाया
यह जला ध्वज फिर भी लहराया
क्रोध भी आया कुंठा भी
पात्र बना मैं दया का
स्वयं की दृष्टि में भी
पर सर न झुकने पाया
अडिग ,अचल, अकेला ही सही
लोहा मैंने अपना ज़रूर मनवाया
घुड़सवारों की भाँती
गिरा भी मैं
संभल के फिर चल दिया
उन पैदलों से तो अच्छा ही था गिरना
जिन्होंने धरती को अपना घुटना दिया
पीछे न देखा, केवल आगे कदम बढाया
विश्वास को मुट्ठी में दबाया
आंखे बंद कर सपने देखे
उन सपनो को साकार बनाया
तू स्तम्भ यदि कहलाना चाहे
सिंह की दहाड़ भी
विजय ध्वज भी या
अचल अटल पहाड़ भी
सूरज सा जो तुझे चमकना हो
तो पहले उसके जैसे जलना होगा
उस चोटी पे पहुंचना हो तो
पहले काँटों के पथ पे चलना होगा
यदि यह भाव है तेरे मन में
और विश्वास है स्वयं पे
कि भाग्य ने तेरा नाम अमर
करने की है ठानी
तो अर्जन कर यह शब्द और
सुन ले यह मेरी ज़ुबानी
जो सपना तूने देखा
उसको बचा के रख
ऐसे हो जा कि वो स्वप्न
कोई न छीन पाए
भले लाख घाव सहने हो तुझे
वो सपना खो न जाए
और जब तेरा सपना प्रकट होते तू देखेगा
लोगों को तुझपे विश्वास
तुझपे निर्भर होते तू देखेगा
समझ लेना हो गया है तू ब्रह्म
जो तुझपे लाठी मरते थे
बन गया तू उनका स्तम्भ
बन गया तू उनका स्तम्भ
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