Dreams

Thursday, July 22, 2010

निर्णय Copyright ©


ऐसे बैठे बैठे

सोच रहा था

की निर्णय कैसे होता है

कौन बनाता नियम

और हार जीत का परिणाम

कैसे होता है

कौन कठ्गढ़ा खड़ा है करता

कौन हथोड़े मारता है

क़ानून भी तो अँधा होता

फिर कैसे फैसले सुनाता है

किसने सोचा यह

कि, यह है परिभाषा निर्णय की

सब भ्रम है

बस मृत्यु है निर्णय

जो वो ऊपर वाला

सुनाता है


यह एक बहुत ही संकरा

शब्द है

द्वन्द है इसकी हर बात में

जब जैसे चाहे

मरोड़ लो इसको

तेरे मेरे हाथ में

जो जीते

उसे समाज विजयी

घोषित कर जाता है

जो तथाकथित हार गया

वो धरती का बोझ

हो जाता है

किसने दिया अधिकार

किसी को भी

कि वो हर चीज़

तय कर जाता है

स्वयं को देखने से पहले

अगले पे ठप्पा लगाता है

विधाता तो कभी नहीं

कहता कि मार गिराओ

शत्रु को

फिर कैसे पराक्रमी

लहू से लतपत अपने हाथो से

अश्वमेध करवाता है

इतने सैनिको के शव के

ऊपर कोई देश

अपने को विजयी घोषित

कैसे कर पाता है


मापदंड और परिधियाँ

बनायीं हैं

बस अपनी सहूलियत के लिए

अपने स्वार्थ के लिए हमने

किये हैं फैसले

और किया निर्णय

यह अधिकार दिया नहीं

हमे किसी ने

प्रकृति से छीना है हमने

इस निर्णय करने की क्षमता

नहीं है हम में

बस भ्रम है

निर्णय तो वो करता है

हम तो बस परछाई

बनके नाचते हैं

नृत्य तो वो करता है

कठपुतली हैं हम

केवल अभिनय करते हैं

निर्णय वो करता है

निर्णय वो करता है

निर्णय वो करता है.

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