बालपन से हठी तो रहा हूँ
बालहठ का सुख भी भोगा है
हर मन चाही वास्तु का
स्वाद भी चखा है
परन्तु स्वयं पे हमेशा
था विश्वास
कुछ करने की थी हरदम आस
एकाग्र-चित्त होके मैंने
उस स्वप्न को जन्म दिया
किन्तु मेरी चुप्पी को सबने
उद्दंडता का नाम दिया
क्रन्तिकारी विचार हरदम थे मन में
दिशाएं तक बदलना चाहता था
ज्ञान का सागर पी के
नया ब्रह्माण्ड रचना चाहता था
मेरी कल्पनाओं के बादल
जाने क्या क्या चित्र बनाते थे
पर मेरे विश्वास को हर बार
सब उद्दंडता का चोगा पहना
जाते थे
अलग सोच और भिन्न विचार
सबसे हटके होते मेरे द्वार
विचित्र था
पर उद्दंड कहलाया गया
समझ नहीं आया उन्हें तो
बिना किसी कारण भी
मुझे जड़ों से हिलाया गया
यह तो थी छुटपन की बात
फिर जब मुझे हुआ ज्ञात
कि मेरी दृष्टि टिकी थी उस ध्वज पे
चोटी से निकलते उस सूरज पे
तब पहली बार इस तथाकथित उद्दंडता की
अनुभूति हुई
स्वयं से कह दिया
उद्दंड तू है इसलिए
क्यूंकी अपनी शक्ति का पूर्ण ज्ञान
है तुझे
अपनी सक्षमता से अन्दर तक
पहचान है तुझे
तो डर मत इस उपाधि से
यह तो तेरे बल, तेरे अन्दर के कौतुहल
का एक प्रतिबिम्ब है
शरमा मत इस से बस साध ले चुप्पी
कहने दे जिसको जो कहना है
तू बस सुलझा वो दिव्या गुत्थी
तू यदि उद्दंड न हुआ कभी कभी
तो यह लोग तेरी सोच को जला देंगे
तेरे सारे सपनो को
समय से पहले ही चिता देंगे
और उस राख को
अपनी अक्षमता के बहते ज़हर में
बहा देंगे
उद्दंड हो तू मौन से
उद्दंड हो तू कर्म से
उद्दंड हो तू धर्मार्थ से
उद्दंड हो तू अपने पुरुषार्थ से
न कभी अपशब्द बोल उनको
न कर तिरस्कार
बस अपनी शक्ति की उद्दंडता को
कर नमस्कार
उनकी छोटी लकीर की अपेक्षा
अपनी लम्बी लकीर खींच जाने
का हो तुझसे घमंड
और इस घमंड को यदि कोई देखे
किसी और दृष्टि से
तो कहलाने दे स्वयं को उद्दंड
बंद तालों को खोलने को यदि
यह नाम दिया जाता है
तो हाँ... मैं हूँ उद्दंड
यदि अलग सोचने को इस नाम
से तिरिस्क्रित किया जाता है
तो हाँ ...हूँ मैं उद्दंड
यदि कठोर सत्य की कड़वाहट को
बिना भय के प्रदर्धित करने के साहस को
यह नाम पुकारा जाता है
तो हाँ... हूँ मैं उद्दंड
समाज के भयावह चेहरे दिखाने
का दर्पण बन जाने को
यदि उद्दंड कहा जाता है
तो हाँ... हूँ मैं उद्दंड
लज्जा नहीं है मुझे तिरस्कार की
न ही व्यक्त करने का भय है
बंद तालों को खोलने का साहस है मुझमे
और नवीन विचारों को अव्तार्तित करने का इरादा तय है
इस सब के लिए मैं क्षमा मांगू तुमसे?
इसके लिए तिरिस्क्रित हूँ?
मेरा उत्तर सुन लो तुम…
सुन लो मेरे मौन का अट्टाहस
देखो तुम्हारे बाणों को
सीने पे झेलने का मेरा साहस
ताकि हो जाए तुम्हे मेरी
शक्ति का आभास
कि मैं बनाऊंगा एक दिन
एक नया अद्भुत, अनुपम
ब्रह्माण्ड
तो क्या हुआ यदि
तुम करार करदो मुझे
उद्दंड
उद्दंड
उद्दंड!
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