Dreams

Sunday, July 25, 2010

दाव ! Copyright ©


बाज़ी बिछी है

पत्ते बिखरे हैं

खोने को है जग सारा

भाग्य ने तेरे

मूह पे जीत का

अवसर है दे मारा

बंद आँखों से

पर खुली बांहों से

कर स्वागत उसका

जो बिन बताये

आ रही है तेरे पास

दबे पाँव

घबरा मत बन्दे

सीना चौड़ा कर

और खेल जा

अपना दाव


विजय और पराजय

का द्वार केवल

एक बार ही खुलता है

और इन दोनों का

मार्ग हमेशा

तू स्वयं ही चुनता है

कोई कहता हम नहीं हैं

भाग्यशाली

किस्मत कभी हमारे

द्वार नहीं आती है

अरे बन्दे किस्मत

इतनी निर्दयी नहीं

वो हर किसी का द्वार

एक बार तो अवश्य खटकाती है

हार के भय से तुम और हम

उसका दामन न पकड़ पाते

और इसी भय से हम

जीत का सेहरा पेहेनने का

एकमात्र अवसर हैं खो जाते

तो तक राह उस अवसर की

और विश्वास कर कि वो अवश्य आएगा

और यदि तू साहस कर पाया तो

तेरा विजय परचम लहरा जाएगा

तो कर आलिंगन उस अवसर का

भुला दे पुराने घाव

दिल खोल के लगा बोली

और खोल के खेल

अपना दाव


मैं प्रतीक्षा कर रहा

हूँ उस दुल्हन सी सुस्सज्जित

किस्मत का

जिसने सेहरा हाथ में पकड़ा

पहनाने को

मेरे माथे पे मुकुट सा

जब आये वो मेरे द्वार

तो स्वागत करने को मैं

हूँ तैयार

एक हाथ में पत्ते

एक हाथ में मेरा विश्वास

बिछी है बाज़ी

और चमकता भविष्य है दिख रहा

मैं तैयार हूँ

उसे गले लगाने

जो भी हो मेरा अगला पड़ाव

सब कुछ लगा चुका हूँ

विश्वास के दम पर

मैं खेलूँगा अपना

दाव

मेरे भाग्य का दाव

सुनहरे भविष्य का दाव

दाव

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