भूत, वर्तमान और भविष्य
प्रेम ,पर्यावरण और मनुष्य
प्रकट, प्रतिबिम्ब और अदृश्य
आखाश, पाताल और विश्व
इन सब को जोड़ता कौन
इन सबकी कड़ी कौन
इन सबके आपसी रिश्ते का जोड़ कौन
इन सबके बीच का सेतु कौन
मस्तिष्क....
विचारों को अवतरित होते देखना
और एक सोच का प्रकट होते देखना
इन सब प्रक्रियाओं के
बीच का सेतु कौन
मस्तिष्क
अच्छाई और बुरे
स्वच्छ, निर्मल और क्रूर- कठोर
सौम्यता और घूरे
में चुनाव करता कौन
अपने आवलोकन और प्रत्यक्ष
के बीच का सेतु कौन
मस्तिष्क....
सोच के सागर में डूबा हुआ
एकदिन सुलझा रहा था यह गुत्थी
कि जो प्रकट है और जो
प्रकट हो सकता है
जो नवीन विचार है
और जो अवतरित हो चुका है
उसके बीच में तो खाई है
जिसने इस विश्व
और संभावना की
दूरी मिटाई है
वो शक्ति और उस बाँध को
थामे कौन सा है सेतु
जो सोच , स्वप्न और प्रत्यक्ष
के बीच में खड़ा है
वो , जो मार्ग भी है
और उसके बीच में रोड़ा है
वो केवल है हमारा
मस्तिस्ख
जिसकी असीम शक्ति
की अनुभूति केवल कुछ भाग्यशालियों
को है होती
और जब हो जाती तो
सारी सीमाएं, सारी पराकाष्टा
लगती हैं छोटी
वो ही एक सेतु है जो
विश्वास का स्रोत है
जिसके बूते से ही
यह वर्त्तमान सम्भावना
से ओतः प्रोत है
वो है हमारा मस्तिष्क
इस्पे नियंत्रण पाने से ही
होगी सारे प्रयास सारी चेष्टा
पूरी
और असंभव और संभव
के बीच चुनाव की
न रहेगी मजबूरी
खोलो द्वार उस मस्तिष्क के
और बढाओ अपने दायरे
वश में कर लो सारे विचार
और कर लो सपने पूरे
क्यूँकी यह सेतु
आत्मा का परमात्मा से मिलन का
एकमात्र द्वार है
यह टूट जाए तो
हमारा मनुष्य होना
बेकार है
यह ही है अभ्युथान , कल्याण और मोक्ष
का एक मात्र धूमकेतु
हमारा मस्तिष्क……एक सेतु
मस्तिष्क…एक सेतु
मस्तिष्क…एक सेतु.
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