माँ कबर बीटिं लगीं च
बेटा ब्यो कब करणु कु विचार च
स्याणु हवे गें तो
बता मैं सने
कन ब्वारी चएंदी
मिन लौंण
मिन बवाली ब्यो कु बारा मा
त मिन अभी सोची नि च
तुम सने ब्वारी चएंदी च
तुम ही बातें देया
कै चुल्ला माँ तुमण
झोक्ण मैं सने
खुद तैं के देया
पिताजी का चेहरा मा चिंता देखि
माँ कु मन पढ़ी कि देखि
भुल्ली कु उत्साह भी खूब देखि
देखि की तैं मिन अपनी गिच्ची खोली
ब्वारी कु दिल
बद्रिवाशालाकी जन
बडू होनु चएंदु
बाल भागीरथी कि लहरा जन
शीतल होण चएंदी छन
बुरांस कि जन सुन्दर
वुइं कि त्वचा होणी चएंदी च
सुबेर तन खिलणी चएंदी च
जन बरसाता का ठीक पहला
काफल पक्दु
जन गर्मी की धूप मा
केदारनाथ कु मंदिर
चमक्दु
माँ तू मेरु दिल जणदी छें
बस तन हुइएनि चएंदी
जन पल्ली पार
बाह बाज़ार कु हल्ला होंदु
ते सने मिल्ली नि तन ब्वारी
किले कि मैं सने
पूरु गढ़वाल
चएंदु च
अब बात तन च
कि माँ ब्वारी
ढुंढणु कि बात
छेड्दी नी च
किले कि सब लड़कियां
अब कु ज़माना कि
तन होंदी नि छन
दिब्र्ग गौं लगदु च
मेरु गढ़वाल बदबू
मरदु च
अब त बस एक ही इच्छा च
घर बसौलू तब्बी
जब सब गढ़वाली
गढ़वाल सने उन्च्छु उठौला
और भैरे चकाचौन्द से पहला
गढ़वाल सने
सम्मान दिलौला
सम्मान दिलौला
सम्मान दिलौला
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