तकते रहते जीवन के घूरे
मिलावट , कालिक और सपने अधूरे
दूर रेगिस्तान में बनती
मृगत्रिष्णा को बस
चाहते रहते पूरे पूरे
हम में से बहुत हैं
जिनको पवित्रता और सौंदर्य
की न हुई अब तक अनुभूति
क्युंकी समय नहीं इस भौतिक जीवन में
बस धन संपत्ति पाने की
इच्छा ही है गगन छूती
समय कहाँ है
देखने को हरी पत्तियाँ
लहराते बादल
चमकती बिजलियाँ
फूल और उगती मासूम कली
न आसमान को सुसज्जित करता इन्द्रधनुष
न पवित्र गोधुली।
जो सुन्दर है , जो दैविक है
जिसकी मासूमियत इस जहाँ से
है परे
वो अकस्मात् ही आता है
दबे पाऊँ , चुपके से
एक अद्भुत अनुभूति करा जाता है
सतरंगी इन्द्रधनुष
की प्रतीक्षा नहीं की जाती
जब वो दिखाई देता
बस उसकी अपार सुन्दरता का,
स्थिर होके,आनंद लिया जाता है
क्यूँ, कब, कैसे, जैसे प्रश्नों
का कोई अर्थ न रह जाता है
जब इन्द्रधनुष आकाश में
अपनी विनम्रता फैलाता है
शांत भाव से संध्या काल में
इश्वर का आशीष लिए
जब मन को श्थिर होना हो
तो गोधुली की ठंडी पुरवाई
का स्वाद चखा जाता है
उस क्षण की कोमलता
उसकी अद्भुत मादकता का
प्याला पिया जाता है
उसपे दृष्टि टिकी हो ,
ध्यान मग्न हो तो
परमात्मा से मिलन हो जाता है
इन्द्रधनुष और गोधुली
का तब महत्व समझा जाता है
ऐसे अद्भत क्षणों को
बहुत ध्यान से अनेको बार
मैंने जिया है
स्वर्ण और सतरंगी
देव आकृति
का होता यह जलता दिया है
ऐसे प्राकृतिक सौंदर्य का
हम महत्व भूल चुके हैं
इस दुनिया की रेलम पेल की चक्की
में पूरे पिस चुके हैं
कभी मिले समय और शांत हो मन
सौंदर्य निहारने और
देव दर्शन को आतुर हो जब अंतर्मन
तो इस भाग दौड़ से परे हो के
रिश्ते नातों को किनारे लगाके
देखो इन्द्रधनुष और गोधुली को
एक टक
जो खालीपन हैं अन्दर
वो सारा भर जाएगा
अपने जीवन का सार
आँखों के सामने चला आएगा
इस दिव्य अनुभूति की
सबको आवश्यकता है
क्युंकी चाहे जितना भी बलशाली हो
दौड़ का घोडा
एक दिन अवश्य थकता है
समय निकालो
थके शरीर और मन
से चिंता की चादर फ़ेंक डालो
नयी स्फूर्ति आएगी तन मन में
आत्मा पुनः जाग उठेगी
बच्चो की सी किलकारी
जीवन को एक नया राग़ देगी
निकाल दो एक दिन सारे
थके, पुराने ,जीर्ण
विचारों, नियम और सोच
की स्वयं से केंचुली
खुली आँखों से , फैली बांहों से
स्वागत करो
यह इन्द्रधनुष और यह गोधुली
यह इन्द्रधनुष और यह गोधुली
यह इन्द्रधनुष और यह गोधुली!
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