Dreams

Monday, March 29, 2010

आवाज़ Copyright ©.


कवी कौन है

अपनी कल्पनाओं की पतंग

को जो दूर गगन में

उड़ा दे

या समाज का प्रतिबिम्ब?

मेहेकते फूलों के रंगों को

अपनी कलम से जो सजा दे

या फिर उस युग का दर्पण?

कलाकार या मुखौटा?

दर्शक या प्रश्न चिन्ह?

नए युग की ओर बढ़ते कदम का आघाज़

या फिर मूक हो गयी आत्मा की

आवाज़!


अवलोकन करने और

व्यक्त करने के बीच का सेतु

या फिर सोये हुए ज़मीर को जगाने

का धूमकेतु

इक आवाज़ जो हर प्रकार के मानव

को उसका चेहरा दिखा सके

और सुन्दरता या कालिक पुते चेहरे को

हर एक तक पंहुचा सके

प्रेम ग्रन्थ हो या दर्शन शास्त्र

की शैली

या फिर हसाते हसाते व्यक्त

करदे वो जो है मैली

जिसे भय न हो पाठक का

न हो लज्जा तिरस्कार की

न हो ख्याति का लालच

न लालसा पुरूस्कार की

बस एक आवाज़ हो

जो भेद सके हर ह्रदय को

और पिरो दे एक सूत्र में

सारी भावनाएं, हार और विजय को।


आवाज़ को चाहे कोई दबाये

या फिर उसके कम्पन को कोई छुपाये

उस ओमकार की न छुप सकेगी ध्वनि

क्युंकि हर मानव में वो

थरथराता है

सोये हुए विवेक को वो ही जगाता है

और पत्भ्रष्ट हो गयी सभ्यता को

वो ही राह दिखता है

भंवर में फसे समाज की नय्या

वो ही पार लगाता है

वो ही पार लगाता है

वो ही पार लगाता है!

Saturday, March 27, 2010

धुन Copyright ©.


सुनी थी कहानी

मीरा की

नाची कनैहिया के

ह्रदय की ताल पे

आज मीरा का साथी बनके

थिरका मैं भी

मदमस्त चाल से.

वीणा का सुर न था

न मृदंग की ताल थी

बस गूँज रहा था

मन में मधुर संगीत

और मादकता बेमिसाल थी।


तोड़े सारे बंधन मैंने

बस घुन्घ्रू बाँध लिए

बारिश की बूंदो से

संगीत चुराया

और बिन सोचे

पैर झूम उठे

अटखेली करते मेरे ख्याल

दूर गगन में उड़ चले

मृदंग ने जो ताल बताई

मैं उस जैसे हो चला

वीणा के तारो की झंकार के आगे

मेरा मन प्रसन्नता से रो पड़ा।


खनक रहा ह्रदय मेरा

अब बस एक ही झंकार से

सितार बना लूँ

कल्पना का और साज छेडू

कलम की आवाज़ से

ह्रदय को छू लूँ

मन को जीतू

अपने इस अदने से अंदाज़ से

राग मेरे हो

और साज़ भी मेरा

पांव थिरके सबके

और सब झूमे

थोडा थोडा

न मेघ मल्हार हो

न भैरवी

न ठुमरी न दादरा

बस खुशियों की बेला

बस खुशियों की बेला!