मज़ाक बन गयी यह हसी
और यह बेमतलब सी ज़िन्दगी
बेमौंत मर गयी यह चाह
और खो गयी वोह राह।
सांस बन गयी कठिनाई
अब बस निकले है कराह
धकेला जा रहा यह जीवन
किसी को नहीं परवाह।
बड़ी लम्बी रह गयी यह रात
सूरज न चमक रहा
इन्द्रधनुष के रंग
ढूंढता वोह रह गया
हाड मॉस की लाश के जैसे
कर रहा रहा जीवन, निर्वाह।
कितना सुन्दर था वोह
मुख चन्द्र का ताप यह कहता था
उत्तेजित अभिलाषा से
उमंगो की भाप फेंकता था।
सपने सारे सच कर दूंगा
इस का राग़ आलापता था
थकना जैसे अपमान बराबर
स्वाभिमान पे उसके होता था।
हर कठिनाई को हस्ते हस्ते
पार लगाता था
देखो कैसे थक कर बैठा
जीवाट का जो प्रतिबिम्ब होता था।
कहदो उस से
भोर की पहली किरण से पहले
सबसे काली होती है रात
हर नए युग से पहले
होता है प्रलय का घात
हर विजय से पहले
होता ही है बनवास
तो तू क्यूँ थक के हार गया
व्यर्थ न जायेगा तेरा प्रयास
कमर को कसले, थोडा सा हसले
सज रही है तेरी विजय थाल
राज्यअभिषेक का बिगुल बज रहा
तू बस सिंहासन संभाल
तू बस सिंघासन संभाल।
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