कवी कौन है
अपनी कल्पनाओं की पतंग
को जो दूर गगन में
उड़ा दे
या समाज का प्रतिबिम्ब?
मेहेकते फूलों के रंगों को
अपनी कलम से जो सजा दे
या फिर उस युग का दर्पण?
कलाकार या मुखौटा?
दर्शक या प्रश्न चिन्ह?
नए युग की ओर बढ़ते कदम का आघाज़
या फिर मूक हो गयी आत्मा की
आवाज़!
अवलोकन करने और
व्यक्त करने के बीच का सेतु
या फिर सोये हुए ज़मीर को जगाने
का धूमकेतु
इक आवाज़ जो हर प्रकार के मानव
को उसका चेहरा दिखा सके
और सुन्दरता या कालिक पुते चेहरे को
हर एक तक पंहुचा सके
प्रेम ग्रन्थ हो या दर्शन शास्त्र
की शैली
या फिर हसाते हसाते व्यक्त
करदे वो जो है मैली
जिसे भय न हो पाठक का
न हो लज्जा तिरस्कार की
न हो ख्याति का लालच
न लालसा पुरूस्कार की
बस एक आवाज़ हो
जो भेद सके हर ह्रदय को
और पिरो दे एक सूत्र में
सारी भावनाएं, हार और विजय को।
आवाज़ को चाहे कोई दबाये
या फिर उसके कम्पन को कोई छुपाये
उस ओमकार की न छुप सकेगी ध्वनि
क्युंकि हर मानव में वो
थरथराता है
सोये हुए विवेक को वो ही जगाता है
और पत्भ्रष्ट हो गयी सभ्यता को
वो ही राह दिखता है
भंवर में फसे समाज की नय्या
वो ही पार लगाता है
वो ही पार लगाता है
वो ही पार लगाता है!
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