हर मनुष्य बचपन से
पारितोषिक का इच्छुक होता है
उसकी पीठ थपथपायी जाए
इसका भिक्षुक होता है।
अब हो चाहे वोह पिता
का छाती से लगाना
या फिर माँ का
“मेरा राजा बेटा” बुलाना
उसके लिए वोह ही पारितोषिक होता है।
परिभाषा बदल जाती है
जैसे ही आयु बढती है
भिन्न भिन्न हो जाता है ईनाम
जब सन्दर्भ बदलता है।
भूखे के लिए
एक समय का भोजन है पारितोषिक
सड़क पे भीगते श्रमिक के लिए
एक छोटा त्रिपाल है पारितोषिक
उधर राजनेता के लिए
करोडो की घूस है पारितोषिक
प्रेमिका के लिए प्रेमी
का दिया हुआ फूल है पारितोषिक
अभागे बच्चों के लिए
प्राथमिक शिक्षा और छोटा सा स्कूल
है पारितोषिक।
हमे बस दिखता नहीं
चहुँ ओर है हमारा पारितोषिक
हर किसी के हिस्से कम से कम
एक तो है पारितोषिक।
कुछ न दिखे तो
बस नज़र दौड़ा
संसार की अद्भुत सुन्दरता ,
सागर की लहरें और
बर्फीली चोटियों को देख मुस्कुरा
और मान ले इसे अपना पारितोषिक
बच्चे की किलकरी और फूलों के रंगों को
नीले आस्मां और हरे मैदान को
बना पारितोषिक।
चाहे मेरी पीठ न थपथपाई हो
चाहे मेरे हिस्से जीत न आई हो
जीवन ने चाहे हर बार खदेड़ा हो
या दुखती रग को छेदा हो
चाहे आंसू आये हों या मुस्कान
मैं इस बात से नहीं परेशान
क्युंकी यह सुन्दर जीवन
है मेरा पारितोषिक
कुछ करने की चाह
है पारितोषिक
उम्मीद से भरा दिल
है पारितोषिक
मेरा पारितोषिक!
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