सुनी थी कहानी
मीरा की
नाची कनैहिया के
ह्रदय की ताल पे
आज मीरा का साथी बनके
थिरका मैं भी
मदमस्त चाल से.
वीणा का सुर न था
न मृदंग की ताल थी
बस गूँज रहा था
मन में मधुर संगीत
और मादकता बेमिसाल थी।
तोड़े सारे बंधन मैंने
बस घुन्घ्रू बाँध लिए
बारिश की बूंदो से
संगीत चुराया
और बिन सोचे
पैर झूम उठे
अटखेली करते मेरे ख्याल
दूर गगन में उड़ चले
मृदंग ने जो ताल बताई
मैं उस जैसे हो चला
वीणा के तारो की झंकार के आगे
मेरा मन प्रसन्नता से रो पड़ा।
खनक रहा ह्रदय मेरा
अब बस एक ही झंकार से
सितार बना लूँ
कल्पना का और साज छेडू
कलम की आवाज़ से
ह्रदय को छू लूँ
मन को जीतू
अपने इस अदने से अंदाज़ से
राग मेरे हो
और साज़ भी मेरा
पांव थिरके सबके
और सब झूमे
थोडा थोडा
न मेघ मल्हार हो
न भैरवी
न ठुमरी न दादरा
बस खुशियों की बेला
बस खुशियों की बेला!
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