Dreams

Monday, March 8, 2010

मैं और हम! Copyright ©


कोई कुछ नहीं करता

तो मैं क्यूँ करूँ

सबकी है जो धरोहर

उसक मोल मैं क्यूँ भरूँ ?

सब अच्छा है,

जब तक मेरे लिए सब अच्छा है

सबके कर्मो का फल

अपने माथे क्यूँ मढउन ?

स्वार्थी हो गया मानव

इतना की स्वयं के सिवा

कुछ नहीं दिखता

इतना,कि उसके लिए

आजकल इमान भी बिकता

"हम सब एक है"

का नारा सब लगाते

“पर मैं सबसे नेक हूँ”

यह मन ही मन छुपाते।


होड़ लगी है सबसे ज्यादा

किसके पास?

पहले कौन?

दुनिया किसकी दास?

भूल गए कि सब न होते

तो यह जग न होता

अकेला ही काट ता अकेला ही बोता

दुःख बांटने से बंट ता है

सुख बांटने से बढ़ता

“ हम “ की परिभाषा जान

ले मानुष

“खुद” से खुदा नहीं मिलता।


सबको ले के साथ तू चल

हर ले सब की पीड़ा

निमित्त मात्र बनजा बन्दे

उठा ले सबका बीड़ा।

प्रभु भी देखे

उसके दिया जीवन को

तूने कैसे है निभाया

सबको लेके साथ

नया समाज कैसे बनाया।

बाँध ले सबको प्रेम सूत्र में

गले लगा ले “हम” को

पांच ऊँगली का हाथ है बनता

पुनः सिखा दे सबको।

त्याग से बड़ा तप नहीं है

सिखा दे पूरे जग को

त्याग से बड़ा तप नहीं है

सिखा दे पूरे जग को!

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