बचा सके तो बचा ले मुझको
उत्पीड़न मेरा हो रहा
माता से संबोधन होता था
आज चीर हरण हो रहा।
जननी थी मैं कहीं किसी दिन
आज मरण मेरा हो रहा
पहले इसके की और खून बहे
और लग जाए मानवता पे पूर्ण विराम
हे ईशा बचा सके तो बचा ले मुझको
त्राहिमाम त्राहिमाम!
पुत्र मार रहा पुत्र को मेरे
देख रहा तू खड़ा खड़ा
खड्ग के आगे शीश झुक रहे
आत्म विश्वास है अब डरा डरा।
क्रोध की ज्वाला ने भस्म कर दिया
मानव को
और उसी राख ने जन्म दिया
प्रतिशोध के दानव को।
अहंकार की फांसी पे
झूल रहा है यह समाज
और लहू की धारा पे तैर रहा
है धर्म का जहाज
भ्रष्टाचार की कालिक पुत गयी
मेरा आँचल मैला गया
प्राकृतिक सौंदर्य की परत छिल गयी
प्रदूषण वायु में रोग के जैसे फैल गया।
अपशब्द निकले सबके मूह से
एक समय जो करते थे प्रणाम
त्राहिमाम त्राहिमाम!
भू ,धरा ,धरती , जनजी
के आगे शीश झुकाएं
बचा लें उसको हर रोग से
और नतमस्तक हो जाएँ।
वोह जीवन दाता है
पूजता उसे विधाता है
हम तुम भी करे अर्पण
अपने श्रद्धा के फूल
माथे अपने लगा लें
उसकी चरणों की धुल।
थक गयी माँ अपनी
करने दो विश्राम
ना पुकारे आज से वो
त्राहिमाम त्राहिमाम !
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