Dreams

Friday, April 30, 2010

सामान्य से अशोक ! Copyright ©.


कोकिला का स्वर आज क्या कहता है?

नदी का प्रवाह आज किस ओर बहता है?

एकाग्र चित्त होता था जो कभी

आज उसका ध्यान कहाँ रहता है?

आवाज़ की भटकती गूँज को

सुनने वाला , न कोई

धड़कन की ताल पे

मुस्कुराने वाला , न कोई

डर से ठंडी हो गयी पीठ

को सहलाने वाला, न कोई

और प्रतिपल भटकते जा रहे

को वापिस बुलाने वाला, न कोई!


अकेलेपन का जब अथाह सागर

दिखता है चारो ओर

सन्नाटे की गूँज जब

मचाती है शोर

घबराहट का भूचाल

जब छाती को है भेदता

और कमजोरी का ठंडा लहू

जब नसों में है रेंगता

घबरायी आँखें जब

देखती है धुंधलापन

और मृत हो जाता

अन्दर का चुलबुलापन

जब बंधे हाथ खुल न पाएं

और घुटन से सांसें निकल न पाएं

जब और घसीटने की न हो हिम्मत

और ‘उम्मीद” का ध्वज झुका हो

जीवट का मज्जा भीतर से चूस चुक्का हो

आस्था और भक्ति रुक चुकी हो

और आत्मा इस होड़ में कहीं छुप चुकी हो

तब क्या करो

कैसे करो?

कैसे उभरो

और घाव कैसे भरो?


सुन्न होने दो शरीर को

आत्मा हो जाए चुप चाप

विचारों को पनपने न दो

और न छेड़े धडकनें भी आलाप

सांसें थम जाए

और शव सामान हो जाओ

मानो मृत्यु का आभास हो।

फिर करो एकाग्र, शून्य से

जन्म दो नवीन जीवन को

ओमकार के भ्रूण से

और बो डालो बीज एक नए

सुकून से

अपने जीवन की तख्ती पे छपे

उन घावो को मिटा दो

और नयी खड़िया से रंग के

पुरानी , जीर्ण सोच और अनुभवों को चिता दो।


ऐसे चौराहे पे पुनः न खड़े रहने

का प्रण करो

और हमेशा गतिमय रहने की भरो चाबी

ताकि न हो धुंधलापन कभी

और न हो पथभ्रष्ट ज़रा भी।

इश्वर के दिए जीवन का एक बार फिर

करो आलिंगन

और इस नए जीवन के नए रूप के ज्ञान का

सभी इन्द्रियों से करो सृजन ।

तुमको यह नया जीवन

हरदम यह याद दिलाये

कि पराक्रमी हो तुम

बुद्ध हो तुम

ब्रह्म हो तुम

शिव का डमरू, उसका त्रिशूल हो तुम

अंकुर और कोख दोनों हो तुम

शक्ति का स्रोत हो तुम

मरनोप्रांत जागे हो तुम

तो अशोक हो तुम

अशोक हो तुम

अशोक हो तुम!

अल्फाजों का कारवां नहीं इसे दिल की धड़कन कहो,
जुबां पे आये इस से पहले निगाहों से पी जाओ और महसूस करो!

Monday, April 26, 2010

कैसे Copyright ©.


कैसे बताए कोई

किसी को कितना है प्यार उस से

कैसे दिखाए कोई

कि कितनी कद्र है उसकी

और कैसे , कि वो भांप जाए

कि उसकी परछायी

ठंडी छाँव है

और कैसे कि स्वर्ग बने जा रही धरती

जहाँ रखते वो पाँव है?

कैसे बताए कि आँखें बंद हों तो

हर सपना बिन उसके अधूरा है

और कैसे कि उसकी चांदनी से ही

उस का चाँद पूरा है

कैसे बताए कि

क्या है उसकी भक्ति

कि दूर क्षितिज पे खोखली निगाहें

उसके आने की राह है तकती.

कैसे?


कैसे दर्द व्यक्त करें

जो उसके एक निर्दयी बोल से होता है

और कैसे कि एक पुचकार, एक आलिंगन

कैसे मिश्री के घोल सा होता है

कैसे बताएं कि एक पुकार लगा दे कोई

तो गहरे समुन्दर से मोती

निकाल लेन का जोश सा आता है

और कैसे कि उसके देखने भर से

शरीर मादक और मन मदहोश सा हो जाता है?

सारी इछाएं कैसे तितलियों की भांति उड़ पड़ती है

जब वो कहते कि मैं हूँ…

कैसे भय दुबक के बैठ जाता है

जब वो कहते है कि मैं हूँ...

और कैसे हर्षित दिल प्रक्षेपास्त्र की भाँती

निकल जाता क्षितिज के पर

जब वो कहते हैं कि मैं हूँ....

कैसे तोलें प्रेम को और

अनुमान कैसे लगायें इसके आकर का

कैसे नापें इसको

होता यह भांति भांति प्रकार का

और भावो को व्यक्त कर भी दें हम

पर कैसे बताएं जब यह प्रकट हो जाता

निराकार सा।

कैसे?


गीत बने हैं कितने सारे

प्रेम, प्यार हमारे तुम्हारे

नदियाँ पहाड़ और ये सारे तारे

और खुशबू फूल और यह बहारें

इन्द्रधनुष और सारी कलियाँ

इधर , उधर की सारी गलियाँ

पर कैसे बताएं वो जो हैं कहना चाहते

कैसे , जिन भावनाओ की लहर में बहना चाहते

कैसे बताए जग जीत लेंगे

लौट आओ

और कैसे यह कि प्राण दे देंगे

जो तुम न आओ

कैसे कि वो तो सुगंधों की बेला है

और कैसे कि वो न हो तो भीड़ में भी एकदम अकेला है

कैसे बोल दें कि दर्पण भी गौरव से चमक उठे

जो उसका प्रतिबिमं अपने चेहरे पे देखे

कैसे कि बारिश की बूँदें भी राग छेड़ें

जब वो अपनी चुलबुलाहट चहुँ और फेंखे

कैसे?


यह सब कैसे बताएं

वो देख नहीं सकते?

कैसे चमकें

क्या वो यह स्नेह की गर्मी

खुद ही सेक नहीं सकते?

उम्र न बीते यह समझाने में

क्या वो सुन नहीं सकते

जो हम कह नहीं सकते?

क्या शब्द लिखें जो यह बता सके

अधरों के थिरकने

और दिल की जुबान तो पढ़ नहीं सकते

कैसे बताएं

कैसे

कैसे?