बड़ी कमाल की बात है
चमकते सूरज के साथ ही
सारी थकावट दूर हो गयी
हर किरण मानो चिकित्साविदान
सा लेप हो
और सुगन्धित फूलों
की कलियाँ जैसे
नए युग का संकेत हो
ऐसा कुछ अनुभव हुआ
इस बसंत की पहली धूप में
मुस्कुरा उठी हर इच्छा हर चाह
उल्लास का मृदंग बजने लगा
ह्रदय में गूंजें..सारंगी और वीणा
स्पर्श करने की बात है बस
जीवन भव्य है
न कि छल , कपट या मिथ्या।
मादक होके इस बसंत की सुगंधों में
छेड़ो मन का साज़
झूमने लगेंगे स्वयं ही अंग अंग
कंठ देगा आवाज़
छोड़ के सारी चिंता देखो
बसंत की हलकी बारिश को
खोल के अपना पंख फैलाव
नचाओ थिर थिर पैरों को
बूंदों को तुम संगीत दो
सरगम होगा तेरी चाल में
खुला मैदान होगा चारो ओर
बिन मेघ मल्हार के जैसे
सावन में नाचते मोर
पञ्च तत्त्व से तू बना है
होगा ये एहसास बरम बार
मिलन होगा इन तत्वों से तेरा
प्रभु से जैसे मिल रहा
और उसकी रचना की मय का प्याला
उसके साथ बैठ के ही पी रहा।
इस बसंत में
बाहर जाओ
पंख फैलाओ
पेंग बढ़ाओ
सूरज पी लो
नुक्कड़ के बच्चों के साथ खेलके
एक पल में पूरा जीवन जी लो
बूँदें पकड़ो , इन्द्रधनुष जक्ड़ो
भँवरे के साथ स्पर्धा लगाओ
तितलियों को बागीचे में ले जा के
उनपर पुष्पों का अर्घ्य चढाओ।
चुटकुला सुना तो पवन को तुम
कान मरोड़ो फूलों के
धक्का दे दो पढो को और
चूंटी भरदो कलियों पे
पूरी सांस भरके सीटी मारो
उस ऊपर वाले को
कहदो “ आज तो आजा नीचे तू भी
खेल मेरे संग
और दिखला मुझे साक्षात में
अपने करतब, अपने ढंग
क्या अद्भुत संसार है तूने बनाया
बस आज के दिन न कर पराया"।
करके देखो एक दिन सब यह
फिर देखो क्या होता है
कैसे समय का भटका पहिया
तेरा चर्नामृत पीता है
और तेरे भाग्य के घर में
कैसे पुनः बसंत होता है
पुनः बसंत होता है
पुनः बसंत होता है!
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