Sunday, April 11, 2010
एक रुपैया और दो अठन्नी ! Copyright ©.
जेब में नहीं है पैसे प्यारे
ठन ठन गोपाल के नारे
खर्चे क्या जब है बस
एक रुपैया , दो अठन्नी
बस हसी है अपनी“ मिलियन डालर”
कहते मेरे प्यारे सारे
मिलियन डालर मूह पे पेहेनके
जेब में खनके है चवन्नी
कैसे होंगे सपने पूरे
जब बस एक रुपैया, और दो अठन्नी
घबरा मत बच्चे , सर ऊंचा कर
अपने सपनो का पीछा कर
छोड़ के बंधन आगे बढ्ले
दुनिया मुट्ठी में अपनी करले
सुनी थी बचपन में यह कहानी
बड़े बूढों की जुबानी
सर धस गया नोटों के नीचे
मुट्ठी में सपने नहीं बंद हो पाते
दौलत की ज़ंजीर , बेड़िया बन गयी
सुर बस खनकते सिक्को के गाते
सपनो को बस सोच रहा मैं
बूढी हो गयी यह जवानी
कैसे होंगे सपने पूरे
जब बस एक रुपैया, और दो अठन्नी
रिश्ते नाते सब पैसे से
बस पैसे से सारी यारी
एक तरफ ईमान का पलड़ा
हरी पत्तियों का पलड़ा हरदम भारी
जेब में वज़न हो तो
मुट्ठी में सारी दुनिया दारी
अब बस केवल एक इच्छा है
नोटों से भरे अपनी अलमारी
सपने सारे हो जाएँ पूरे
मुझे भी लग जाये यह बीमारी
देखूं तो क्या होता है
हरी हरी हो जब मेरी सवारी
बहुत पुरानी हो चली अब
दारिद्रय की यह कहानी
अब न हो बस जेब में मेरे
एक रुपैया और दो अठन्नी !
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