बहुत हो गए हरे पत्ते
मेहेकते फूल और
मधुमक्खियों के छत्ते
बारिश, बेला और नीला आकाश
आयें धरती पे और
करें तलाश
क्यूँ भूखे हैं
चौराहे पे
भीख मांगते यह बच्चे
देश का भविष्य जिन्हें होना है
उन्हें आज रस्ते पे भूखे सोना है
राज भोग की इच्छा न करते
जूठन खाते हस्ते हस्ते.
भूखे!
पाप, पुण्य की बात कहाँ अब
यह तो बात है मानवता की
हर स्तर पे समानता की
पूछो उनसे जो भूख बेच रहे
दारिद्रय की फसक सींच रहे
अपने स्वार्थ की कालिक
इन बेचारे बचों पे पोत रहे
अपने संदूकों को भरके
इनके ओर आखें मीच रहे।
क्या यह है भारत का नया भविष्य
जहाँ धारा सिर्फ धनी की ओर है बहती
और बच्चों की किलकारी
भूख भूख है बस कहती.
क्या होगा जब यह भूख बढ़ेगी
पेट की आग जब हर ओर जलेगी
भस्म हो जाएगी यह संरचना
पूँजीवाद की तामीर ढायेगी
जंगल का क़ानून चलेगा
केवल योग्यतम ही बचेगा
इस से पहले यह दरिया सूखे
कुछ करें आओ इन बच्चो के लिए
जो ना चिल्लाएं हरदम, हरपाल
हम हैं भूखे, हम हैं भूखे!
निर्माण हमारा ऐसा हो
कि लोभ से पहले आवश्यकता हो पूरी
हर बच्चा भर पेट सोये और
न हो भूखे होने की मजबूरी।
फिर धरें हम नीव यहाँ पे
स्थिर जिस से हो यह काया
तब हम माने की
हमने विकास का परचम है लहराया
और उन्नति और विकास कमाया।
खोखली नीवो पे न धरे हम
अपनी सभ्यता की व्यवस्था
और न चिनें हम ईंट गारे से
जो है कमज़ोर और सस्ता
पहले सबको दे दें यह प्रमाण
कि इस देश का भविष्य
चमक रहा है
क्युंकी मानवता का सिक्का खनक रहा है
फिर पूरे कर ले वादों को हम
और दिखला दे कि वो नहीं हैं धोके
कैसे…?
अब से बचे न सोयें भूखे
न सोयें भूखे
न सोयें भूखे!
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