Dreams

Tuesday, April 20, 2010

धर्म या पाखण्ड Copyright ©.


धर्म क्या है

मंदिर के दर्शन

या आराध्य पे जल चढ़ाना

या प्रातः कल में अल्लाह को

पुकार लगाना?

रुद्राख्श की माला पकड़ के

१०८ बार शिव- शिव चिल्लाना

या फिर हर नए काम से पहले

उसको मिठाई कि रिश्वाद खिलाना?

मुझे नहीं था पता कि यह है धर्म

अब तो आ रही है मुझे शर्म

मैं तो यह सब नहीं कर पाता

और ना ही है कोई इरादा

रह गया मैं दंग

चिल्ला रहा हूँ मैं सबको कि

यह धर्म नहीं

यह है पाखण्ड,

घोर पाखण्ड!


भगवे कपडे पेहेनके

साधू करते पाप

उसपे टीका, बस्म रमा के

दिखाते सबको जाप।

गीता, कुरान से शब्द उठाते

और अपनी व्यग्तिकत ज़रूरतों के लिए

कुछ की कुछ परिभाषा बनाते

फिर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद गिराते

जेहाद जेहाद और हर हर महादेव चिल्लाते

औरतों को विधवा और मासूम बच्चों को अनाथ बनाते

फिर मक्का की ओर मूह करके

और तुलसी की परिक्रमा करके

अपने कुकर्म पे अध्यात्म की परत चढाते

क्या यह है धर्म और अपना भारत अखंड?

पाखण्ड है पाखण्ड

घोर पाखण्ड!


अब तो सीधा कटु सत्य बोलूं तुमसे

करदो यह हथकंडे बंद

धर्म निरपेक्षता का झंडा पकड़ो

और करो भारत को बुलंद

नहीं तो मैं वो आवाज़ हूँ

जो है इतनी प्रचंड

जन सामान्य में जो पीड़ा है

उसको मैं कुरेद के उसे जगाऊंगा

जो घाव दियें है तुमने मैं

उन्हें पुनः हरा बनाऊंगा

और भगवे को तुम्हारे तन से कर दूंगा हरण

वो हिम्मत कर लेंगे जो कमज़ोर आते थे तुम्हारी शरण

फिर अन्दोल की लहर दौड़ेगी और

तुम्हारी व्यवस्था होगी खंड खंड

क्यूकि यह तुम्हे और हमको भी पता है

यह धर्म नहीं

यह है पाखण्ड

घोर पाखण्ड.

पाखण्ड!

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