मिथ्या, भ्रम या अन्धकार
जीवन मृत्यु
स्वीकृति या तिरस्कार
भौतिक भक्ति या विचार
यह क्या हैं
आधा सच या पूरा झूठ ?
यह प्रश्न इसलिए क्यूंकि
सब धुंधला सा दिखता है
या तो उजाला कम है
या अन्धकार है और आँखें बंद है.
क्यूंकि जो दिखता है
मैं जानता हूँ कि वो पूरा सच नहीं
रेगिस्तान में मृगत्रिष्णा की भाँती
अथाह फैला हुआ एक झूठा प्रतिबिम्ब
या कपूर की भाँती
उदात्त होती एक सचाई ।
जहाँ तक मेरा दृष्टि
देख सकती है
और जहा तक भी मेरे विश्वास
की श्रद्धा और भक्ती है
बस धुन्धलापन नज़र आता है
निष्कलंक इस छवि
में एक उन्देखा दाग नज़र आता है।
या तो मेरी कल्पना प्रोढ़ हो चली है
या फिर इस चक्रवूह के पार उड़ पड़ी है.
या मैं मादक हूँ इतना कि मेरे
संतुलन का बाँध ढहे जाने की घडी है।
जो भी है
कुछ तो है जो मैं भांप सकता हूँ
पर नाप नहीं सकता
जिसकी प्रतिपल अनुभूति होती है
पर मैं थाम नहीं सकता।
इस धुंधलेपन को मैं अभी
स्पस्ट बता नहीं सकता
इस रहस्य को मैं
अभी सुलझा नहीं सकता
परन्तु इस सत्य और मिथ्या
के बीच की बारीक रेखा पे बैठके
भौतिक और दैविक दोनों
कुछ कुछ साफ़ दिखता है
और इस ज्ञान से, भीतर
एक अद्भुत लौ जलती है
एक ऊर्जा,
एक शक्ति
ज्वालामुझी
विद्युत
कि मैं जानता हूँ
सब है या तो आधा सच या पूरा झूठ
आधा सच या पूरा झूठ
आधा सच या पूरा झूठ!
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