घडी नहीं यह रोने की
और ना ही खुद को खोने की
यह है आरम्भ युद्ध का
सारथी चाहे न हो कृष्ण
और हो चाहे तू अकेला
होने अन्याय के विरूद्ध का
उठा के खड्ग और ढाल
होने दे धरती को लाल
कहती गीता भी यह ही
कि युद्ध ही है वीरों का प्रमाण!
हो बाण तेरे तरकस में तैयार
उठा कमान
और ललकार!
आज यदि तू बैठ गया
अकड़ में अपनी एंठ गया
भयभीत हो गया युद्ध की पुकार से
मान ले यह, न होंगे सपने पूरे
किसी की भी गुहार से।
ध्वज अपने लहराने को
युद्ध तो करना होगा
और लोहा अपना मनवाने को
अग्नि में तो जलना होगा
तो शंखनाध होने दे तू
हाथ तेरा तलवार पे हो
कवच को अपने क़स के जकड ले
नज़र तेरी आसमान पे हो।
स्थिरता यदि तुझे पसंद है
संवेदनशील यदि तेरा मन है
तो बढ़ा आगे पग को अपने
और न घबरा यदि तेरी
तलवार कौरव का सर कलमे।
लहराएगा जब तेरा भाला
तब होगा सबको विश्वास
तू न है कायर और ना ही
रुका है तेरा प्रयास.
गिरे जो तू अपने अश्व से भी
तो न हो कभी निराश
क्युंकि घुटनो के बल चलने वालों को
कभी न दिखा है वो प्रकाश।
लहुलुहान हो तेरी छाती
या फिर गिर पड़े तू घायल की भाँती
हिम्मत करके उठ जा खड़ा
क्युंकि वीर भोग्य वसुंधरा
और पराक्रमो विजयते धरा!
इस युद्ध में खड़ा हो चला मैं
और कर दिया शंख नाध
न मुझे अभी भय किसी का
डटा हुआ मैं खड़ा विराट
आये यदि यम देव को भी आना है
मेरे शव के ऊपर से ही जाना है
गरज रहा हूँ लेकर अपने अन्दर ज्वाला
आँखों में अंगारे ,हाथो में भाला
नारायणी सेना की शक्ति जैसे
है अब मेरी काया
और स्वयं नायारण ने है मुझे पथ दिखाया
अब न लडखडा देंगे यह पग मेरे
सर्वत्र विजय के लूँगा फेरे
यह युद्ध ही है अब मुझे घेरे
नभ स्पर्षम दीप्तम
पराक्रमो विजयेते !
पराक्रमो विजयेते !
पराक्रमो विजयेते !
No comments:
Post a Comment